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________________ २७९ साधना की निष्पत्तियां परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं। मुझे तो भारत का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है।' ___एक भाई गुरुदेव के पास एक दैनिक पत्र लेकर आया। उस पत्र में गुरुदेव के सम्बन्ध में अनेक अनर्गल बातें लिखी हुई थीं। उसी समय एक प्रतिष्ठित वकील गुरुदेव के उपपात में पहुंचे। उन्होंने वह पत्र देखा। पत्र पढ़कर वे बहुत दुःखी हुए। विगलित स्वरों में बोले- 'यह क्या पत्रकारिता है? ऐसे सम्पादकों पर मुकदमा चलाना चाहिए।' गुरुदेव ने मधुर मुस्कान के साथ कहा- 'वकील साहब! कीचड़ में पत्थर फेंकने से कोई लाभ नहीं। मैं कार्य को आलोचना का उत्तर मानता हूं अत: मुकदमा चलाने या उत्तर देने की अपेक्षा कार्य करते जाना ही अधिक अच्छा है। विरोध में शक्ति खपाना निषेधात्मक भाव है अत: विधायक दृष्टि से कार्यजन्य समाधान ही व्यक्ति को ऊपर उठाता है।' वकील साहब गुरुदेव की इस विधायक दृष्टि से चमत्कृत हो गए। जीवन की असफलता एवं प्रतिकूलता में भी कभी निराश न होने के कारण गुरुदेव का पुरुषार्थ कभी कुंद नहीं हुआ। उनकी स्पष्ट अवधारणा थी कि परिस्थिति को बदलना हमारे हाथ में नहीं है पर पुरुषार्थ, मनोबल एवं विधायक भाव से उसका मुकाबला किया जा सकता है। यही कारण है कि परिस्थिति से प्रताड़ित होकर अकर्मण्य या निराश होना उनके सिद्धान्त के खिलाफ था। इस संदर्भ में साहित्यिक शैली में लिखी गई उनकी यह टिप्पणी जनमानस को झकझोरने वाली है- "परिस्थिति के गलियारों से उठता हुआ धुंआ व्यक्ति को आंख मूंदने के लिए विवश करता है। किन्तु जो व्यक्ति उस धुंए को बर्दाश्त कर लेता है, वह बिना किसी अवरोध के आगे बढ़ जाता है। उसके पदचिह्न दीपक बनकर दूसरों को राह दिखाने का महत्त्वपूर्ण काम कर सकते हैं।' __ मुनि रंगलालजी और नथमलजी आदि अनेक बहुश्रुत साधु जब किन्हीं बातों को लेकर संघ से अलग हो गए तो एक बार संघ में भूचाल जैसा आ गया। केवल गृहस्थ ही नहीं, साधु-साध्वी भी प्रभावित हो गए। सबके मन में एक ही विकल्प था कि अब क्या होगा? उस विकट स्थिति . में अपनी मन:स्थिति का चित्रण करते हुए 'मेरा जीवन: मेरा दर्शन'
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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