SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २७८ द्वारा हमारा स्वागत कर रही है। इसको सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।' गुरुदेव के विधायक दृष्टिकोण ने कष्ट को भी अभिनंदन के रूप में स्वीकार कर लिया। उनके जीवन के ऐसे अनेक प्रसंग है, जब प्रकृति की प्रतिकूलता में सकारात्मक नजरिए से उन्होंने नए तथ्य को ढूंढ निकाला तथा उसे अपनी साधना का एक अंग बना लिया। नांगलोई गांव में सर्दी के अत्यधिक प्रकोप के कारण गुरुदेव को पूरी रात नींद नहीं आई। प्रातःकाल संतों के समक्ष रात्रि-जागरण का अनुभव सुनाते हुए गुरुदेव ने कहा- 'यह पहला ही अवसर है कि इतने लम्बे समय तक सर्दी के कारण जागना पड़ा हो, पर यह खेद की बात नहीं है। खूब एकांत का समय मिला। मनन, चिन्तन और स्वाध्याय में खूब मन लगा। ऐसा एकांत समय मुझे कभी-कभी ही मिलता है क्योंकि सारे साधु तो गहरी नींद में सोए हुए थे केवल मैं अकेला ही जाग रहा था।' यह विधायक भाव विशिष्ट साधना की उपलब्धि है। सर्दी-गर्मी से प्रभावित होकर उद्वेलित होने वाली चेतनाओं को उनका यह वक्तव्य एक नयी सोच दे सकता है- 'कुछ व्यक्ति यह सोच सकते हैं कि इस वर्ष लू न चले तो अच्छा रहे। ऐसा सोचने से पहले व्यक्ति को यह भी सोचना चाहिए कि प्रकृति के काम में रुकावट डालने वाले हम कौन होते हैं ? प्रकृति की प्रतिकूलता का अच्छे ढंग से मुकाबला किया जा सकता है। चिन्तन सकारात्मक हो तो किसी भी परिस्थिति का मुकाबला करने में सुविधा हो जाती है।' ____ विधायक चिन्तन अभाव में भाव तथा कांटों की चुभन में सौरभ की अनुभूति दे सकता है। यदि कोई व्यक्ति उनके सामने निराशा या निषेधात्मक चिन्तन की बात करता तो उसमें भी वे अपने विधायक चिन्तन की पुट देकर उसे नए रूप में प्रस्तुत कर देते थे। दक्षिण यात्रा के दौरान मद्रास में चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य से गुरुदेव की लम्बी वार्ता हुई। राजगोपालाचार्य देश की स्थिति से चिन्तित थे तथा बार-बार निराशा के स्वर अभिव्यक्त कर रहे थे। गुरुदेव ने उनकी निराशा में आशा का संचार करते हुए कहा'मेरी दृष्टि में देश का भविष्य इतना अंधकारमय नहीं है। समय-समय पर ऐसे व्यक्ति पैदा होते रहते हैं, जो देश की नौका को पार लगा सकें।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy