SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७७ साधना की निष्पत्तियां ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र में नयी चेतना भर सकता है। राजनगर का घटना-प्रसंग है। वहां तेरापंथ द्विशताब्दी का विशाल कार्यक्रम आयोजित किया गया। थोड़ी सी आबादी वाले गाँव में ४० हजार लोगों की उपस्थिति हो गयी। वक्ताओं के बोलने के बाद जब पूज्य गुरुदेव ने अपना प्रवचन प्रारम्भ किया तो तेज वर्षा प्रारम्भ हो गयी। कार्यक्रम समाप्ति पर लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- 'आज के अमित आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता किन्तु यदि वर्षा न होती तो बात ही अलग होती।' गुरुदेव ने तत्काल लोगों को समाहित करते हुए कहा- 'वर्षा के भी कुछ कारण हो सकते हैं। लगता है हमारे आनन्द में स्वयं देवराज इन्द्र ने अपनी सहमति प्रकट की है। दूसरी बात इस विशाल कार्यक्रम में यदि कुछ कमी नहीं रहती तो हमारे मन में गर्व आने की संभावना रहती, मगर यह अच्छा ही हुआ कि वर्षा ने वैसा नहीं होने दिया।' एक साधक ही अपनी सफलता में स्थितप्रज्ञता एवं समता का उदाहरण पेश कर सकता है। दृष्टिकोण की स्पष्टता के कारण गुरुदेव तुलसी हर परिस्थिति में अपना संतुलन बनाए रखते थे। प्रकृति एवं परिस्थिति की प्रतिकूलता को उनका विधायक दृष्टिकोण अनुकूलता में परिणत कर लेता था। प्रकृति के प्रति सकारात्मक चिन्तन की एक झलक यहाँ प्रस्तुत है- 'प्रकृति का हर तेवर अपने काम का है। लू का अपना उपयोग है, धूप का अपना उपयोग है और सर्दी का अपना उपयोग है। सर्दी-गर्मी न हो तो प्रकृति से अनेक आपदाओं का स्रोत खुल पड़ेगा। इसलिए इनके होने या न होने में न उलझकर सहजभाव से सहन करने का अभ्यास करना चाहिए।' पूज्य गुरुदेव बीदासर में विराज रहे थे। दोपहर का समय था। मातुश्री वदनाजी गुरुदेव के उपपात में बैठी सेवा कर रही थीं। अचानक तेज आंधी चलने लगी। गुरुदेव के बिछौने पर धूल बिछने लगी। गुरुदेव बार-बार हाथों से धूल को झाड़ रहे थे। आंधी को कौन कहे कि तुम्हारे कारण एक महापुरुष को अतिरिक्त श्रम करना पड़ रहा है। पास बैठी मातुश्री मौन नहीं रह सकीं। उन्होंने निवेदन किया- 'आपको यहां की धूल सताती होगी।' गुरुदेव ने मुस्कराते हुए सहजता से उत्तर दिया"जिसके पास जो वस्तु है, वह वही देता है। यहां की पृथ्वी भी धूलि के
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy