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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
२७६ को देखने से प्राण का प्रवाह उसी ओर हो जाता है। इससे उस भाग की सक्रियता बढ़ती है और दर्द ठीक हो जाता है। प्रकृति में भी कुछ पक्षी अपने अंडों को सेते नहीं, केवल देखते हैं। प्रेक्षाध्यान की पूरी पद्धति गहराई से देखने की प्रक्रिया है। पूज्य गुरुदेव ने आत्मसाक्षात्कार की दिशा में ही देखने का प्रयोग नहीं किया बल्कि नेतृत्व और अनुशासन में भी केवल देखने की शक्ति का प्रयोग किया था। उनकी दृष्टि इतनी वेधक और तीक्ष्ण थी कि वह जिस किसी पर पड़ती, वह बिना कुछ कहे-सुने ही अपनी गलती का अहसास कर जागरूक हो जाता था। अपनी दृष्टि का प्रयोग जहां वे निग्रह/अनुशासनात्मक कार्यवाही के रूप में करते, वहां अनुग्रह दृष्टि से करुणा एवं वात्सल्य का अमृत भी बरसाते थे। ऐसी दर्शनशक्ति किसी विरल अनुशास्ता को ही प्राप्त होती है। विधायक दृष्टिकोण
___ साधक का सबसे बड़ा अलंकरण है-विधायक या सकारात्मक दृष्टिकोण। विधायक दृष्टिकोण जहां रचनाधर्मिता और विकास का संवाहक होता है, वहाँ निषेधात्मक चिन्तन, निराशा और ह्रास का द्योतक है। गुरुदेव ने अपने विधायक चिन्तन से सृजन की नयी दिशाओं को उद्घाटित किया। 'निषेधात्मक एवं विधायक भावों से प्रभावित व्यक्ति के व्यक्तित्व का रेखांकन पूज्य गुरुदेव इस प्रकार करते हैं- 'कुछ लोग निराशा के खोह में सोए रहते हैं। वे अतीत में जीते हैं। भविष्य में उड़ान भरते हैं। जो नहीं किया, उसके लिए पछताते हैं। नई आकांक्षाओं के सतरंगे इन्द्रधनुष रचते हैं। कभी समय को कोसते हैं। कभी परिस्थिति को दोष देते हैं और कभी अपने भाग्य का रोना रोते हैं। ऐसे लोग निषेधात्मक भावों के खटोले में बैठकर जिन्दगी के दिन पूरे करते हैं। कुछ लोग आस्था के स्वरों को गुनगुनाते हैं। नए यात्रापथ पर प्रस्थान करते हैं । अवरोधों को तोड़कर रास्ता बनाते हैं, संघर्षों से हंसते-हंसते खेलते हैं। धैर्य के साथ आगे बढ़ते हैं और मंजिल तक पहुंच जाते हैं। ऐसे लोग विधायक भावों के अश्व पर सवारी करने वाले होते हैं।'
गुरुदेव का चिन्तन सदैव सृजन के गीत गाता रहता था क्योंकि वे नकारात्मक भावों से कोसों दूर थे। उनका चिन्तन था कि सकारात्मक भाव