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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी अंधविश्वास नहीं। वे भाव-पूजा में तन्मय दिखाई पड़ते हैं पर जड़-पूजा के कबीर की भांति कट्टर विरोधी हैं। उनकी अर्हद्भक्ति और गुरुभक्ति कभी वज्र से भी अधिक कठोर है तो कभी कुसुम से भी अधिक कोमल दिखलाई पड़ती है। फिर भी सागर में बूंद की भांति भक्ति-गीतों में उनकी श्रद्धा श्रद्धेय के साथ अभेद स्थापित करती है। भक्तिभावना से परिपूर्ण उनके गीत स्वान्तः सुख के साथ-साथ दूसरों में आध्यात्मिक भावना भरने में भी सक्षम हैं।
अनागत किसी पर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर सकता है पर जीते जी एक विशाल प्रबुद्ध जन-समुदाय की हार्दिक श्रद्धा पाना बहुत बड़ी साधना की निष्पत्ति है। पूज्य गुरुदेव का आभामण्डल इतना प्रभावी एवं वर्चस्वी था कि उसके प्रभाव से अनेक लोगों में स्वतः रूपान्तरण घटित हो जाता था।
पूज्य गुरुदेव का नाम-स्मरण लोगों के लिए मंत्राक्षर है। अत्यन्त श्रद्धापूर्वक जब कभी कोई उनकी स्मृति करता है तो उसमें नवशक्ति का संचार हो जाता है। उनके नाम से जुड़े चमत्कारों का एक संकलन साध्वी श्री कल्पलताजी ने किया है, जो 'आस्था के चमत्कार भाग २' के नाम से प्रकाशित है। यहां उनकी स्मृति से होने वाले चमत्कारों के केवल दो घटना प्रसंग प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
केवलकृष्ण जैन धुरी का श्रद्धालु युवक है। गुरुदेव के अहमदाबाद चातुर्मास में उसके मन में दर्शनों की तीव्र उत्कंठा जग गयी। उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर थी फिर भी उसने सोचा कि दो सौ रुपये किसी से उधार लेकर दर्शन करने चला जाऊंगा। शाम को वह एक भाई के पास रुपए मांगने गया लेकिन उसने मना कर दिया। वह युवक एक-दो व्यक्तियों के पास और गया पर रुपए नहीं मिले। वह दुःखी और निराश हो गया। पूरी रात रोता रहा और मन ही मन बोला-'आज से प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं किसी के पास जाकर रुपए नहीं मागूंगा। गुरुदेव! आप जिस दिन मुझे दर्शन के लिए बुलाएंगे तो रुपए अपने आप आ जाएंगे तभी मैं आपके दर्शन करूंगा।' उसकी पूरी रात गुरुदेव की स्मृति में ही बीत गयी। सुबह जब उठकर वह घर के दरवाजे के पास गया तो वहां एक नया लिफाफा