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________________ २६९ साधना की निष्पत्तियां बनाए रखता है । जब कभी कोई व्यक्ति उनके सामने समस्या लेकर आता.. तो वे उसे आस्था रखने की बात कहते थे । अनेक बार देखा गया कि वह व्यक्ति आस्थाबल से उस समस्या को पार कर लेता। छापर की एक बहिन 1 गुरुदेव को निवेदन किया- 'मेरे शुगर की बीमारी है पर आप मुझे ऐसा आशीर्वाद दें कि मैं वर्षीतप कर सकूं, इसमें बीमारी बाधक न बने।' गुरुदेव ने कहा- 'आस्था रखो हो जाएगा।' आस्था का चमत्कार ही मानना चाहिए कि बहिन के प्रथम वर्ष में ही शुगर कम हो गई और दूसरे वर्ष में बिल्कुल समाप्त हो गयी। उस बहिन ने पुनः डॉक्टर से जांच करवायी तो डॉक्टर ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- 'लगता है तुम्हारे बीमारी कभी थी ही नहीं । अपने तैंतीसवें पट्टोत्सव के अवसर पर उन्होंने सम्पूर्ण संघ को आह्वान करते हुए कहा- "मैं तैंतीसवें वर्ष में श्रद्धा की भावना को . विकसित करना चाहता हूं। मैं चाहे कैसी भी स्थिति - परिस्थिति से गुजरूं, भले इस शरीर का खंड-खंड हो जाए, लेकिन श्रद्धा अखंड बनी रहे, यही मेरी आत्मा की भावना है । ३३ का अंक शुभ माना जाता है। तीन की संख्या को तीन से गुणा करने पर ९ का अंक बनता है । यह अंक कभी खंडित नहीं होता इसलिए शुभ और अखंडित संख्या के प्रारम्भ में मैं संघ में श्रद्धा के विकास का प्रारम्भ करना चाहता हूं।' इसी भावना को उन्होंने काव्यबद्ध करते हुए कहा श्रद्धा और समर्पण का ले, सम्बल चरण बढाएं । और साधना - दीवट पर, सेवा का दीप जलाएं। सागर में लहरें ज्यों अहं भावना स्वयं विलय हो ॥ गणाधिपति गुरुदेव तुलसी ने भक्तिरस में डूबकर अपने आराध्य के प्रति जो कुछ लिखा, उसने उन्हें तुलसी और मीरां के समकक्ष खड़ा कर दिया। उन्होंने अपने गीतों में मधुरता और सहजता से जो भक्ति रस प्रवाहित किया, वह अद्भुत है । गुरुदेव तुलसी के भक्ति गीतों में हृदय की पवित्रता और निर्मलता. का स्पष्ट आभास मिलता है। उन्होंने गीतों में दीनता नहीं, प्रत्युत् पुरुषार्थ की सजीव अभिव्यक्ति की है। उनकी भक्ति में आत्मसमर्पण है, पर
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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