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साधना की निष्पत्तियां मिला, उसे खोलकर देखा तो वह दंग रह गया। उसमें १०००/- रुपये थे। पत्नी को दिखाया तो वह भी आश्चर्यचकित थी। पूरे मुहल्ले में एक-एक के पास जाकर पूछा पर किसी के रुपए गुम नहीं हुए थे। रुपए कहां से आए, यह आज भी रहस्य बना हुआ है पर गुरुदेव के नामस्मरण से उसकी तीव्र भावना पूरी हो गयी, यह आश्चर्य का विषय है।
शार्दूलपुर निवासी रेवतीदेवी बोथरा के एकाएक आंख की ज्योति विलीन हो गयी। नेत्र विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा- 'आपको तत्काल आंखों का ऑपरेशन करवाना पड़ेगा।' ब्लड टेस्ट किया गया तो उस समय उनकी शुगर बढ़ी हुई थी अतः आपरेशन नहीं हो सकता था। वह बहिन निराश होकर शार्दूलपुर पहुंची। एक दिन सामायिक में बैठे-बैठे श्रद्धापूर्वक गुरुदेव के नाम का स्मरण किया और भक्तिपूर्वक मन ही मन बोली- "गुरुदेव! आपने मुझे आध्यात्मिक ज्योति प्रदान की है तो क्या बाह्य ज्योति नहीं देंगे? वह दिन धन्य होगा जब इस जीवन में आपके दर्शन करके आत्मतोष का अनुभव करूंगी। अपने आपको भावना से भावित करके बहिन तन्मय होकर जप करने लगी। सवेरे उठी तो बहिन को ज्योति का अनुभव हुआ। बहिन के श्रद्धाबल से उसकी नेत्र-ज्योति वापिस लौट आई।
पूज्य गुरुदेव की व्यक्तिगत साधना की सिद्धि भी आस्था और श्रद्धा के साथ जुड़ी हुई थी। मेवाड़ के जड़ोल गांव में श्रद्धासिक्त भावों से लिखी गयी डायरी की निम्न पंक्तियां अनेक साधकों का मार्गदर्शन करने वाली हैं- "होली के बाद मेरे मन में संवेग और निर्वेद भाव प्रवर्धमान रहा। कई दृष्टियों से आनंद की अनुभूति हुई। औदासीन्य भावना का विकास हुआ। संवेग और निर्वेद की निरंतर अभिवृद्धि के लिए मानसिक संकल्प किया। एक वर्ष तक लगातार यह क्रम बना रहे तो आध्यात्मिक दृष्टि से नए विकास की संभावनाओं का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। गुरुदेव :शरणम्', 'गुरु कृपया सर्वं सफलम्' यह विश्वास मेरे जीवन का सबसे बड़ा आलम्बन है।
__ पूज्य गुरुदेव ने लाखों करोड़ों भक्त-हृदयों पर शासन किया। उनकी श्रद्धा को पाया यह सत्य है पर जब वे अपने आराध्य की भक्ति में लयलीन होते थे तब उनका भक्त रूप भी उतना ही कमनीय था, जितना भगवान्
का।