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________________ २६५ साधना की निष्पत्तियां हिला दिया। प्रस्तुत वार्तालाप से स्पष्ट है कि पूज्य गुरुदेव के मन में अपने गुरु के प्रति कितनी श्रद्धा, लगाव एवं भक्ति थी। आचार्यकाल के प्रारम्भिक वर्षों में संघ के आंतरिक विरोध की स्थिति में गुरुदेव ने जब-जब मानसिक उद्वेलन की स्थिति का अनुभव किया, कालूगणी की प्रतिमा उनके सामने साकार हो जाती। उनकी डायरी के हर पृष्ठ कालूगणी की स्मृति से सजीव हैं। चिंता का भार गुरुचरणों में छोड़कर वे स्वयं निश्चिंत हो जाते। बम्बई यात्रा का प्रसंग है। मारवाड़ में कुछ साधुओं के बारे में ऐसे समाचार आए, जो संघीय दृष्टि से अनुकूल नहीं थे। एक गृहस्थ गुरुदेव के पास वहां के समाचारों का पत्र लेकर आया। उसे पढ़कर डायरी में अपनी मनोदशा लिखते हुए गुरुदेव कहते हैं * एक भाई पत्र लाया। उसमें वहां के संतों को लेकर विचित्र से समाचार हैं। वहां के कुछ लोगों में विकृति भर गई, ऐसा मालूम हुआ। गुटबंदी की बात सुनी। विषय विचारणीय व गहन लगा, पर होना क्या है? गुरुदेवः शरणमस्तु।" * आज एक पत्र फिर आया है उसी विषय का। इधर-उधर की काफी बातें हैं। पर अभी तक विश्वस्त समाचार प्राप्त नहीं हुआ है। कुछ चिंता सी है। कारण कि हम बहुत दूर हैं। मारवाड़ यहां से ७०० मील होगा। शुभकरण ने पहले ही बहुत कहा था पर मुझे ऐसा लगता था कि मैं किसी दूसरे की अंतरंग प्रेरणा से बंबई पहुंचा हूं। चिंता मुझे क्यों हो? वह अंतरंग प्रेरक स्वयं चिंता करेगा। फिर भी पुरुषार्थवादी होने के नाते उपचार करना होता है। संभव है हमारे प्रवास का अनुचित लाभ उठाने की कुछ व्यक्ति सोच रहे हों। अंतरात्मा यही साक्ष्य देती है कि होना जाना कुछ भी नहीं है। गुरुवरः शरणमस्तु।... गुरुकृपातः सर्वं सफलम्। __ अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, आस्था और समर्पण का भाव ही साधक को उन्नति के शिखरों पर पहुंचा सकता है। पूज्य गुरुदेव का अतिशायी व्यक्तित्व सदैव अपने पूर्वजों के गुण-गान में लीन रहता था। वे अपनी विशेषता और विकास का सारा श्रेय पूर्वज आचार्यों को देते थे। आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में वे गुरु थे पर पूर्वजों के प्रति उनके श्रद्धागीत देखकर ऐसा लगता है कि उनका समर्पण एक शिष्य की तरह बोल रहा है।'
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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