________________
२५७
साधना की निष्पत्तियां सबसे पहले समझें क्या है, जीवन की परिभाषा।
भूल न जाएं फूलन जाएं, पाकर ज्ञान जरा सा॥ - विनम्र व्यक्ति कभी किसी की अवमानना नहीं कर सकता क्योंकि अकड़पन में ही व्यक्ति दूसरे का पराभव या तिरस्कार करता है। पूज्य गुरुदेव आत्मौपम्य भाव में विश्वास करते थे अतः कड़ा अनुशासन करने पर भी किसी को अपमानित या प्रताड़ित करने का लक्ष्य नहीं रहता था। कभी कोई ऐसा घटना प्रसंग घटित हो जाता तो वे विनम्रता से अपने विचारों में परिमार्जन कर लेते थे। यहां उनके जीवन की दो महत्त्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख किया जा रहा है, जो सबके अन्तस्तल को छूने वाली
हैं।
. बम्बई प्रवास में लोगों ने कहा कि यहां की वर्षा दिनचर्या को
अस्त-व्यस्त कर देती है। एक दिन प्रवचन में गुरुदेव ने फरमाया'बम्बई की वर्षा को लेकर हमें बहुत विभीषिका दिखाई गयी किन्तु निरन्तर वर्षा के बावजूद हमें किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हुई। सब काम व्यवस्थित रूप से चल रहे हैं। गुरुदेव के ऐसा कहते ही प्रकृति ने अपना भीषण रूप दिखाना शुरू कर दिया। पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि शायद प्रकृति ने मेरे कथन को मेरा अहं मानकर उस पर चोट करने का निर्णय कर लिया या मुझे अपनी ही नजर लग गयी। कई बार मैं अपने स्वास्थ्य या कार्य की प्रशस्ति में कुछ कह देता हूं तो अविलम्ब मुझे उसका परिणाम भोगना पड़ता है।' अनवरत वर्षा से प्रवचन और गोचरी में बाधा उपस्थित होने लगी। पूरे दो सप्ताह तक धूप निकलना तो दूर, सूरज भी दिखाई नहीं दिया। गुरुदेव ने चिंतन किया- 'प्रकृति की अवमानना क्यों की जाए, इस चिंतन के साथ प्रकृति के अधिष्ठायक को सम्बोधित करते हुए कहा"मैंने जो कुछ कहा वह अहंभाव के कारण नहीं कहा। सहज भाव से कही गयी बात भी किसी को अखरी हो तो मैं शुद्ध मन से खमतखामणा करता हूं।' गुरुदेव के ऐसा कहते ही उस दिन अनायास वर्षा रुक गयी और धूप निकल आयी। गुरुदेव की इस सहज विनम्रता और सहजता से बम्बई की जनता विस्मय-विमुग्ध हो गयी।
लाडनूं का प्रसंग है। पूज्य गुरुदेव के पास एक संत की शिकायत