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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
२५४ मगनलालजी स्वामी ने इस सन्दर्भ में कालूगणी को निवेदन किया। उनके निवेदन पर कालूगणी स्वयं आहार करने के बाद पट्ट पर रेत बिछाकर मुनि तुलसी का हाथ पकड़कर उस पर अक्षर लिखना सिखाते। अक्षर लिखाने का क्रम वि. सं. १९९१ तक चला। इस प्रसंग को अभिव्यक्ति देते हुए पूज्य गुरुदेव कहते हैं- 'लिपि के लिए मैंने सलक्ष्य प्रयत्न भी किया पर वह मोड़ नहीं सीख सका। पूज्य कालूगणी की मेहनत का कुछ परिणाम सामने तो आया किन्तु उस कला में मैं निष्णात नहीं हो पाया।'
कुछ व्यक्ति भोलेपन और सरलता में अन्तर नहीं कर पाते हैं। इन दोनों में भेदरेखा को स्पष्ट करते हुए गुरुदेव ने कहा- 'स्वयं फंसना भोलापन है तथा औरों को फंसाना छल है। सरल व्यक्ति इन दोनों स्थितियों से ऊपर होता है। पूज्य गुरुदेव की आर्जव-साधना प्रकर्ष पर थी। अनेक बार उनकी ऋजुता का लोग दुरुपयोग कर लेते थे पर वे सरलता को पवित्रता एवं आत्मालोचन का अपरिहार्य अंग मानते थे। सरलता की प्रेरणा देने का उनका तरीका भी अद्भुत था। किसी भी घटना प्रसंग को माध्यम बनाकर वे जनता को सरल एवं पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा दे देते थे।
पूज्य गुरुदेव ने आमेट पधारने की घोषणा कर दी। लोगों के हर्ष का पार नहीं था। स्वागत में सभी व्यक्ति उत्साह से अगवानी में जा रहे थे। जुलूस में ४-५ हजार लोगों की उपस्थिति थी। पंडाल में पहुंचने के दो मार्ग थे। एक मार्ग से जुलूस जा रहा था। दूसरा मार्ग थोड़ा छोटा था। अनेक लोग शार्टकट के रास्ते में पहले पहुंचकर प्रवचन-पंडाल में आगे बैठ गए। गुरुदेव ने लोगों को पहले से ही प्रवचन-पंडाल में बैठे देखा तो विनोदपूर्ण भाषा में प्रेरणा देते हुए कहा- 'आप लोग सीधा-सरल रास्ता चाहते हैं। क्या ही अच्छा हो आप अपने जीवन-व्यवहार में भी इसी सीधे सरल रास्ते को अपना लें। सादगी एवं सरलता से जीवन बिताना कितने लोगों को पसन्द है?' गुरुदेव का यह तीखा प्रश्न सबके अन्तर्मन को कुरेदने लगा पर उत्तर देने का साहस किसी के पास नहीं था। .
कलकत्ता विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् सतकौडी मुखर्जी गुरुदेव के सरल एवं निश्छल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए। गुरुदेव से हुई मुलाकात को उन्होंने इन शब्दों में प्रकट