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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
२५२ कहते हैं- 'सरलता का अर्थ है-घुमावरहित होना, गतिशील होना, बहना, चक्करदार न होना, पेचीदा, जटिल न होना। यदि आपके व्यक्तित्व में घुमाव नहीं है, आप समतल हैं, आपमें दुर्गम घाटियां नहीं हैं, चक्करदार गलियां नहीं हैं तो आप सरल हैं।' पूज्य गुरुदेव के शब्दों में ऊपर से नासूर की सफाई होती रहे और अन्दर ही अन्दर पीप सड़ती रहे तो स्वास्थ्यलाभ नहीं हो सकता। उसी प्रकार आंतरिक सरलता के बिना बाहरी सरलता से आत्मा का हित नहीं सध सकता।
__ अपनी कमी या वस्तुस्थिति को सहजता से प्रकट कर देना साधना की महान् निष्पत्ति हैं। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी पूज्य गुरुदेव की सरलता से अत्यधिक प्रभावित हैं। इस सन्दर्भ में वे अपनी सोच प्रस्तुत करती हुई कहती हैं- 'आचार्यश्री की साधना के जिस पक्ष ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है, वह है उनकी ऋजुता। जो व्यक्ति ऋजु होता है, वही अपने जीवन को खोलकर रख सकता है। आचार्यश्री ने समय-समय पर अपने बारे में लिखित या मौखिकरूप में जो टिप्पणियां की हैं, उन्हें सामने रखकर सोचती हूं तो मन में आता है कि इस स्थान पर मैं होती तो यह बात इस रूप में कभी नहीं कह पाती।' पूज्य गुरुदेव के जीवन के ऐसे सैकड़ों प्रसंग है, जब प्रवचन में या साधु-समुदाय के बीच उन्होंने अपनी कमी या भूल को स्पष्टता से रख दिया। मेरा जीवन : मेरा दर्शन' पुस्तक में उन्होंने अनेक ऐसे प्रसंग उजागर किए हैं, जिनको पढ़कर श्रोता दंग रह जाते हैं। वे कहते थे- 'मैं अपनी प्रशस्ति-कथा नहीं, आत्मकथा लिख रहा हूं। आत्मकथा में सभी प्रकार के प्रसंगों का समावेश हो जाता है। समय-समय पर ऐसे
और भी अनेक प्रसंग सामने आते रहेंगे। जीवन की किसी घटना का सम्बन्ध दुर्बल पक्ष से है, इस कारण मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता क्योंकि मैंने भगवान् महावीर को पढ़ा है, आचार्य भिक्षु को पढ़ा है, महात्मा गांधी को पढ़ा है। इन महापुरुषों ने अपने जीवन के सबल और दुर्बल दोनों पक्षों को उजागर किया है। उनके जीवन से मुझे प्रेरणा मिली है। मैं सोचता हूं कि महावीर, भिक्षु और गांधी जो काम कर सकते हैं तो तुलसी क्यों नहीं कर सकता? जो महापुरुष मेरे लिए प्रेरणास्रोत बने हैं, उनका अनुगमन करना मेरा कर्त्तव्य है, यही सोचकर मैं अपनी जीवन-पोथी के कुछ अंतरंग पृष्ठ