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________________ साधना का उद्देश्य समर अगर करना हो कर तू, अंतरंग अरि को संहर तू, दुर्लभ समर योग्य सामग्री, पौर-पौर में पौरुष भर तू, बनना है उदग्र अभियानी, आयारो की अर्हत् वाणी। सामान्य व्यक्ति बाह्य युद्ध में अपने वीरत्व को प्रकट करता है, वहाँ साधक अपने आपसे युद्ध करके दुर्जेय अंतरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है। महावीर कहते हैं- दुर्जेय दस लाख शत्रुओं पर विजय पाना उतनी बड़ी विजय नहीं है, जितनी अपनी एक आत्मा को जीतना। गुरुदेव श्री तुलसी साधकों को आत्मयुद्ध की प्रेरणा देते हुए कहते हैं *"युद्ध के योग्य अवसर दुर्लभ है। ऐसा दुर्लभ अवसर पाकर व्यक्ति पीछे न हटे। वह आगे बढ़े और संघर्ष करे- अपनी दुर्बलताओं के साथ, असत् प्रवृत्तियों के साथ तथा निषेधक भावों के साथ। इस संघर्ष का अंत एक-दो दिन या एक-दो महीने में नहीं होगा, यह शाश्वत संघर्ष है। इसे तब तक करते रहना है, जब तक असत् की सर्वथा निवृत्ति न हो जाए।" *"यदि कत्ले आम करना है तो आत्मा के उन शत्रुओं का करो जो तुम्हारे ही हथियारों से तुम्हारे पर कब्जा किए हुए हैं तथा जो तुम्हें पतन की ओर खींच रहे हैं।" *"मनुष्य में ही ऐसी क्षमता है कि वह आत्मयुद्ध करके चैतन्य का अनुभव कर सकता है। जो साधक अपने विजातीय तत्त्वों से लड़ना नहीं जानता, वह साधक अन्तर्यात्रा की ओर प्रस्थान नहीं कर सकता। अपनी आत्मा पर विजय पाने वाला समूचे संसार का विजेता बन जाता है।" प्रतिस्रोतगमन में उत्साह बुभूषा (कुछ होने की इच्छा) हर साधक की नैसर्गिक चाह होती है। कुछ होने के लिए साधक को महावीर वाणी के निम्न पद्य सदैव स्मृति में रखने आवश्यक हैं
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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