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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी तुम उस तरफ लँगड़ाते - लँगड़ाते जाते हो। लंगड़ाते हुए जाने वाले लोग भी पीछे की तरफ नहीं जाते।' गुरुदेव श्री तुलसी अनेक बार कहते थे- 'जो लक्ष्य बन जाता है, उस तक पहुँचे बिना अटकना या रुकना मेरा स्वभाव नहीं है ।' लक्ष्य के प्रति डाँवाडोल आस्था वालों को भी वे प्रेरणा देते रहते थे कि स्वीकृत मार्ग पर निष्ठापूर्वक चलते रहो, आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, मंजिल अवश्य मिलेगी। कुछ दूर चलने पर भी मंजिल दिखाई न दे तो भी लौटने की बात मत सोचो क्योंकि सही ढंग से किया गया प्रयत्न कभी निष्फल नहीं होता। जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो, गति में श्लथता मत आने दो।" लक्ष्य तक पहुँचने के लिए दृढ़निष्ठा ही नहीं, धैर्य और कष्टसहिष्णुता भी अनिवार्य है। पूज्य गुरुदेव का स्पष्ट अभिमत था कि कष्टों से घबराकर सीधा और सरल रास्ता खोजने वाले व्यक्ति मंजिल की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाते। वे कभी बढ़ भी जाते हैं तो उन्हें पुनः लौटना पड़ता है । काव्य की इन पंक्तियों में वे यही संबोध देना चाहते हैं ४ सुख में तो सब दिखलाते हैं, अपना-अपना स्वत्व । किन्तु कष्ट में जो खिल जाए, उसका बड़ा महत्त्व ॥ लक्ष्य-निर्धारण होने के बाद जीवन की दिशा में परिवर्तन घटित हो जाता है । व्यक्ति की जो तन्मयता पदार्थ के प्रति होती है, वह स्वतः अस्तित्व की ओर मुड़ जाती है । पूज्य गुरुदेव का चिंतन था कि उत्कट चाह जगने के बाद अन्तर्यात्री बनने में कोई बाधा नहीं रहती । व्यक्ति चलते समय, बैठते समय, खड़ा रहते समय और लेटते समय भी अन्तर्यात्रा कर सकता है। वह अकेला हो या समूह में, गांव में हो या जंगल में, किसी भी अवस्था में अपने भीतर जा सकता है। मूल तत्त्व है सही दिशा का निर्धारण और उस ओर संकल्पपूर्वक प्रस्थान । विजातीय तत्त्वों से युद्ध 'जुद्धारिहं खलु दुल्लहं' अप्पाणमेव जुज्झाहि' महावीर की यह क्रान्तवाणी हर साधक के लिए चेतावनी है। पूज्य गुरुदेव द्वारा महावीरवाणी से अनूदित ये काव्य पंक्तियाँ हर साधक में साहस, पौरुष और विजय की भावना भरने वाली हैं
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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