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________________ साधना का उद्देश्य को देखो ह्रस्व को नहीं, उत्कृष्ट को देखो साधारण को नहीं, उपनिषद् की यह वाणी लक्ष्य की विशालता एवं व्यापकता की ओर इंगित करती है। पूज्य गुरुदेव कहते थे कि साधक का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए आत्मबोध एवं आत्मोदय। मेरे सामने अनेक कार्य हैं लेकिन सबसे प्रथम कार्य है- व्यक्तिगत साधना। मैं कहीं भी रहूं और कुछ भी करूं, इस लक्ष्य को विस्मृत नहीं कर सकता। इसी बात की प्रेरणा उन्होंने पंचसूत्रम् में दी- .....----- नाहाराय न पानाय, नाश्रयाय न वाससे। अस्माभिः स्वीकृता दीक्षा, न प्रतिष्ठोपलब्धये॥ आत्मोदयाय साधुत्वमस्माभिः स्वीकृतं शुभम्। तेनात्मनि दृढ़ा श्रद्धा, समुन्नेया मुमुक्षुभिः॥ अच्छा भोजन, स्वादिष्ट पेय, भव्य अट्टालिका एवं मूल्यार्ह कपड़ों के लिए साधक घर नहीं छोड़ता। साधना का मुख्य लक्ष्य होता है- अस्तित्व बोध एवं आत्मोदय। आत्मोदय में जो सुख है, आनंद है, वह शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। विवेकानंद के शब्दों में- "साधक सदैव इस भाषा में सोचता है कि आत्मा ही मेरा सर्वोच्च आदर्श है। अपने प्रकृत स्वरूप की अनुभूति ही मेरे जीवन का एकमात्र ध्येय है। एक सोने की थैली साधक का आदर्श कभी नहीं बन सकती। एक आदर्श के लिए और केवल उसी एक आदर्श के लिए जीवित रहो। उस आदर्श को इतना प्रबल, इतना विशाल एवं महान होने दो, जिससे मन के अंदर और कुछ न रहने पाए, मन में अन्य किसी के लिए भी स्थान न रहे, अन्य किसी विषय पर सोचने के लिए समय ही न रहे।""प्रेक्षासंगान' में गुरुदेव तुलसी ने इसी सत्य का संगान किया है छोड़ बहिर्मुखता बनें, अन्तर्मुख आलीन। जीवन में वह जोड़ता, है अध्याय नवीन॥ लक्ष्य-निर्धारण के बाद भी यदि दृढ़निष्ठा या इच्छाशक्ति पत्रल नहीं होती तो लक्ष्य विस्मृत हो जाता है और सफलता दूर चली जाती है। खलील जिब्रान कहते हैं कि- 'तुम भले हो जब तुम अपने लक्ष्य की ओर दृढ़ता और साहसपूर्ण पैर बढ़ाते हो। लेकिन तब भी तुम बुरे नहीं हो, जब
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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