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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी भीतर छिपे आनंद, शक्ति और चेतना के प्रवाह का अनुभव सहज हो जाता है। साधक अपनी जीवन-यात्रा में इन उद्देश्यों को सम्मुख रखकर साधना को आगे बढ़ाता है— १. लक्ष्य के प्रति समर्पण २. विजातीय तत्त्वों से युद्ध ३. प्रतिस्रोतगमन में उत्साह ४. कलात्मक जीवन जीने में प्रशिक्षण चैतसिक निर्मलता का विकास ५. ६. एकाग्रता का अभ्यास ७. पापभीरुता का विकास। २ लक्ष्य के प्रति समर्पण लक्ष्य-निर्धारण साधक को भटकने से बचाता है । जिस साधक का कोई लक्ष्य नहीं होता, उसका जीवन बिना पतवार की नौका के समान होता है। पूज्य गुरुदेव का अभिमत था - 'जो साधक अपने लक्ष्य के प्रति सर्वात्मना समर्पित हो जाता है, वह सब कुछ पा लेता है। बीज अपने अस्तित्व को खोता है, तभी अंकुरित हो पाता है। बूंद अपने अस्तित्व को खोती हैं, तभी समंदर बन पाती है। इसी प्रकार साधक और साधना में अद्वैत घटित होता है, तभी परम सत्य का साक्षात्कार होता है । 'गुरुदेव श्री तुलसी के शब्दों में लक्ष्य एक कवच है, जिसे पहनकर व्यक्ति कहीं भी चला जाए तो वह बुराइयों से बच सकता है। लक्ष्य के प्रति समर्पण के विषय में स्वामी विवेकानंद के विचार उद्धरणीय हैं- "यदि जीवन में अभीष्ट सफलता चाहते हो तो एक आदर्श को लो, उसका चिंतन-मनन करो, उसी को अपने सपने में पा लो और उसी को अपना जीवन बना लो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, स्नायुतंत्र एवं समूचे अंग प्रत्यंगों को उसी आदर्श के विचार से ओतप्रोत कर दो और अन्य विचारों को एक तरफ हटा दो। फिर देखो सफलता कैसे तुम्हारे कदम चूमती है ?" साधना के पथ पर प्रस्थित व्यक्ति को हमेशा ऊँचे लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए। " दीर्घं पश्यत मा ह्रस्वं परं पश्यत माऽपरं " दीर्घ
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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