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________________ २४६ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी गति मंद है। फिर भी मेरा विश्वास प्रबल हो रहा है कि एक दिन हम अपने प्राप्तव्य को प्राप्त करके रहेंगे।' पूज्य गुरुदेव की दृष्टि में सुख, शांति और आनंद को प्राप्त करने हेतु तीन अपेक्षाएं हैं १. जीवन प्रकाशमय बने। २. मोह का आवरण दूर हो। ३. राग-द्वेष क्षीण हों। चेतना के आनन्द में बाधा डालने वाला एक बड़ा तत्त्व हैटेंशन/तनाव। पूज्य गुरुदेव का मानस टेंशन से सर्वथा मुक्त था। अनुशास्ता होने के नाते उनके जीवन में अनेक प्रसंग ऐसे आए जबकि उन्हें कड़ा अनुशासन भी करना पड़ा। लेकिन दूसरे ही क्षण उस घटना से मुक्त होने, के बाद उनके चेहरे पर कोई शिकन तक देखने को नहीं मिली। कोई व्यक्ति उनके चेहरे को देखकर यह सोच भी नहीं सकता था कि कुछ क्षण पूर्व उन्होंने किसी को इतना कड़ा उलाहना दिया है क्या? वे स्वयं इस सत्य को स्वीकार करते थे कि पानी की लकीर की भांति मेरा टेंशन शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। गीता का यह पद्य उनके चिंतन, वाणी और कर्म में सदैव तरंगित होता रहता था प्रसादे सर्वदुःखानां, हानिरस्योपजायते। प्रसन्नचेतसो ह्याशु, बुद्धिः पर्यवतिष्ठते॥ वह साधक कभी आत्मा में रमण नहीं कर सकता, जो पदार्थ में आसक्त है। अपरिमित आकांक्षाएं एवं इच्छाएं व्यक्ति को सुख-शांति और आनंद से नहीं जीने देतीं। एक इच्छा की पूर्ति अनेक इच्छाओं को जन्म देती है। व्यक्ति आकांक्षा के चक्रव्यूह में इतना फंस जाता है कि उससे निकलने की कल्पना भी नहीं कर सकता। इस संदर्भ में पूज्य गुरुदेव का संबोध मननीय है- 'यदि आप शांति और आनंद-प्राप्ति के इच्छुक हैं तो अपनी आकांक्षाओं को सीमित करना होगा। इस संसार में पदार्थों की सीमा है। आप असीम संपदा पाना चाहते हैं, यह कैसे संभव है?' पदार्थ में आसक्ति सबसे बड़ा दुःख है, जो व्यक्ति इस सत्य से परिचित हो जाता है, वह अनंत आत्म-सुख को प्राप्त कर सकता है। महर्षि अरविंद इसी अनुभूति को व्यक्त करते हैं- 'आवश्यकताओं को कम करने वाला ही प्रसन्न रह सकता है।'
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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