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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
२३८ विचलित नहीं कर पाता था। दक्षिण यात्रा की ओर प्रस्थान करते समय विहार के दौरान एक बार प्रकृति ने एक दिन में तीन बार रूप परिवर्तन किया। मौसम के उतार-चढ़ाव का उनके सहिष्णु मानस पर कोई असर नहीं हुआ। यदि मौसम का मनःस्थिति पर प्रभाव पड़ता है तो यह उनकी दृष्टि में मानसिक दुर्बलता थी।
सहिष्णुता का उत्कृष्ट रूप है- भावनात्मक स्तर पर सहन करना। पूज्य गुरुदेव का अभिमत था कि जिस व्यक्ति के संवेग सन्तुलित रहते हैं, उसकी सहिष्णुता को कोई नहीं छीन सकता। उसकी विनम्रता, उदारता, धृति, करुणा, अनुशासनप्रियता आदि विशेषताएं कभी क्षीण नहीं हो सकतीं।' समय पर भावनात्मक सहिष्णुता रखना अत्यन्त कठिन कार्य है। पूज्य गुरुदेव का मानना था कि जातीय और साम्प्रदायिक असहिष्णता मनुष्य को जंगली जानवर से भी अधिक क्रूर बना देती है। भारतवर्ष का इतिहास धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं से भरा पड़ा है। पूज्य गुरुदेव ने साम्प्रदायिक विरोध में जो सहिष्णुता का परिचय दिया, वह इतिहास का दुर्लभ दस्तावेज है। वे मानते थे- 'मतभेद रहे पर मनभेद न हो। व्यक्ति की अपनी मान्यता कुछ भी रहे पर दूसरों की मान्यता के प्रति कीचड़ उछालना असहिष्णुता है।' जयपुर में बाल-दीक्षा के प्रबल विरोध के अवसर पर हरियाणा से आए भाइयों के खून में उबाल आ गया। उन्होंने कहा- 'हम अन्याय को सहन नहीं करेंगे।' गुरुदेव ने उनकी उत्तेजना के पारे को शान्त करते हुए कहा- "आप लोगों की थोड़ी-सी असहिष्णुता पूरे धर्मसंघ को बदनाम कर सकती है। अभी आवेश करने का अवसर नहीं है। हमारा काम शांति को सुरक्षित रखना है। सहिष्णुता सदा विजयी होती है, असहिष्णुता व्यक्ति को निर्बल बनाती है। यदि आप सच्चे अर्थों में मेरे अनुयायी हैं तो किसी भी स्थिति में असहिष्णु नहीं बनेंगे।'
__ पूज्य गुरुदेव की भावनात्मक सहिष्णुता का एक घटना प्रसंग प्रसिद्ध साहित्यकार यशपालजी जैन के शब्दों में पठनीय है- "एक जैन विद्वान् आचार्य तुलसी के बहुत ही आलोचक थे। हम लोग बम्बई में मिले थे। संयोग से आचार्यश्री भी उन दिनों वहीं थे। मैंने उस सज्जन से कहा कि आपको जो शंकाएं हैं और जिन बातों में आपका मतभेद है, उनकी चर्चा