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________________ . साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २३४ लिए वरदान सिद्ध हुआ। यदि हम अपना थोड़ा सा भी संतुलन खो देते तो शायद हमारे भविष्य के कार्यक्रमों पर गलत असर पड़ सकता था।" रायपुर से विहार होने के बाद देवास गाँव में पत्थरों की बौछार होने से कुछ कार्यकर्ताओं को चोट लगी। एक नुकीला पत्थर सनसनाता हुआ गुरुदेव की पीठ के बाएं कंधे पर लगा। पीठ से टकराकर पत्थर के दो-तीन टुकड़े हो गए। चोट लगने से पृष्ठभाग पर खून बहने लगा पर गुरुदेव शांत, गम्भीर एवं अविचल मुद्रा में खड़े रहे। चोट लगने के पश्चात् युवकों के खून में जोश उभरना स्वाभाविक था। गुरुदेव ने स्थिति की गम्भीरता को समझा और तत्काल सबको शांत रहने की प्रेरणा देते हुए ओजस्वी वाणी में प्रतिबोध दिया- "मैं अपने अनुयायियों को समता, सहिष्णुता और शांति का विशेष प्रशिक्षण देना चाहता हूं क्योंकि सहनशील बनकर ही हम अपने अस्तित्व पर मंडराने वाले खतरों से बच सकते हैं। ऐसी निम्नस्तर की हरकतों पर हमें बिलकुल भी उत्तेजना नहीं आनी चाहिए। न ही मन में असद्भावना का भाव आना चाहिए। उन लोगों पर क्या गुस्सा किया जाए, जो अज्ञानी हैं ? हम कामना करें, इनको सद्बुद्धि मिले और सही पथदर्शन मिले। जहाँ भी हिंसा का उत्तर प्रतिहिंसा से दिया जाता है, वहाँ आक्रोश, ध्वंस और हत्याओं का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। एक भूल के साथ अनेक भूलों का इतिहास जुड़ जाता है। मुझे विश्वास है हमारे अनुशासन-प्रिय युवक इस स्थिति में भी शांति का परिचय देंगे।" गुरुदेव के इस प्रेरक उद्बोधन से उग्र वातावरण शांत हो गया। असहिष्णु व्यक्ति न सह सकने के कारण प्रतिहिंसक हो जाता है। किन्तु सहिष्णु होने के कारण पूज्य गुरुदेव जीवन्त अहिंसा के व्याख्याता थे। उनका अनुभव था कि जब मैं अनुलोम-प्रतिलोम उपसर्गों को सहन करता हूं तो मुझे लक्ष्य के दर्शन होने लगते हैं।' प्रसिद्ध दार्शनिक देकार्ते का यह अनुभव उनके जीवन में साक्षात् देखा जा सकता था- 'जब-जब लोग मेरी बुराई करते हैं, मैं अपनी आत्मा को इतनी ऊंचाई पर ले जाता हूं कि उनके द्वारा की गई बुराई वहाँ तक पहुँच ही नहीं पाती।' जहाँ जीवन है, वहाँ परिस्थितियों से नहीं बचा जा सकता।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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