________________
२३३
साधना की निष्पत्तियां परिस्थिति में वे अपनी अन्तर्भावना को दृढ़ संकल्प के साथ प्रस्तुत करते रहते थे
* "हमें कैंची नहीं, सूई बनना है। कैंची बड़ी होती है पर जोड़ना उसका काम नहीं है। उसका काम है एक के दो करना। सूई छोटी होती है पर उसका काम है फटे हुए को जोड़ना, दो को एक करना।"
"साधारणतया सामने वाला आग बने तो दूसरे केरोसीन बनने की भूमिका ही निभाते हैं। वहाँ जल बनना बहुत कठिन होता है। ऐसे कठिन समय में ही व्यक्ति की सहनशीलता की परीक्षा होती है। हमारा विश्वास है कि हम हर परिस्थिति में जल की भूमिका निभा सकते हैं।"
घटना प्रसंग से भी वे अपने अनुयायियों को सहिष्णु रहने की प्रेरणा देते रहते थे। सन् १९५९ में बंगाल का घटना प्रसंग है। गुरुदेव का भोजन समाप्त प्रायः था। उनके पास ही एक पात्र में दूध तथा एक नींबू का टुकड़ा पड़ा था। गुरुदेव ने फरमाया- 'सुना है कि नींबू की एक बूंद दूध को फाड़ देती है। आज इस सच्चाई का प्रयोग करना चाहिए। गुरुदेव ने दूध के पात्र में दो-चार बूंदें नींबू की निचोड़ दीं पर दूध फटा नहीं। पुनः कुछ बूंदें और निचोड़ी पर दूध पर कोई असर नहीं हुआ। पास बैठे एक साधु ने निवेदन किया- 'दूध ठण्डा है, इसलिए नहीं फटा।' गुरुदेव ने तत्काल घटना को प्रेरणा का माध्यम बनाते हुए कहा- "शीतल को कोई विकृत नहीं कर सकता । जहाँ उत्ताप है, वहाँ विकार है। शान्त और सहिष्णु व्यक्ति का कौन अहित कर सकता है ? इसलिए सहना धर्म है, सहना उपशम और श्रेय की दिशा में गति है। साधक को सहिष्णु बनकर उससे प्राप्त होने वाले आनन्द का अनुभव करना चाहिए। सहिष्णुता के अभाव में साधुता की अग्रिम भूमिकाओं पर आरोहण की कल्पना ही नहीं की जा सकती।"
रायपुर एवं चूरू के घटनाकाण्ड में पूज्य गुरुदेव की सहिष्णुता निखरकर कुन्दन के रूप में जनता के सामने आई। वे स्वयं इस बात को अंगीकार करते थे कि रायपुर के सम्पूर्ण घटनाकाण्ड में हमने प्रबल पुरुषार्थ और सहिष्णुता का परिचय दिया। परिस्थितियों से घबराकर हमने कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया, जिसके लिए हमें पश्चात्ताप करना पड़े। हमें हर्ष है कि हमारी सहनशीलता, का लोगों ने अंकन किया। रायपुर का काण्ड हमारे