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साधना की निष्पत्तियां परिस्थिति आने पर भी प्रतिक्रिया न करना सहनशीलता का उत्कृष्ट नमूना है। अमुक व्यक्ति ने मेरे साथ गलत व्यवहार किया इसलिए मैं भी उसके साथ अभद्र व्यवहार करूंगा, यह प्रतिक्रिया है। सामान्य मानव क्रिया कम करता है, प्रतिक्रिया अधिक करता है। जो मन सहने की भाषा नहीं जानता, वह प्रतिक्रिया करके नयी-नयी दुःखद परिस्थितियों को उत्पन्न करता रहता है। एक बार सहने का अर्थ है- परिस्थितियों का अंत । पूज्य गुरुदेव का स्पष्ट चिन्तन था कि प्रतिकूल परिस्थिति में घबराहट पैदा हो जाए तो साधना कैसे होगी? यदि प्रतिकूल परिस्थिति ही नहीं आए तो साधक की कसौटी क्या होगी? पूज्य गुरुदेव की प्रतिक्रियाविरति की साधना दूसरों के लिए आदर्श थी। उनकी सहनशक्ति देखकर कभी-कभी विरोधी व्यक्ति भी आश्चर्यचकित हो जाते थे। गुरुदेव तुलसी की सहनशक्ति का राज इस पद्य में खोजा जा सकता है
विकारहेतौ सति विक्रियन्ते। __ येषां न चेतांसि त एव धीरा॥
अर्थात् विकृति का हेतु उपस्थित होने पर भी जिनका चित्त विकृत नहीं होता, उद्वेलित नहीं होता, वे धीर पुरुष हैं।
एक बार पत्रकारों ने गुरुदेव के समक्ष एक प्रश्न उपस्थित किया'आप इतनी विरोधी एवं विपरीत स्थिति में सन्तुलन एवं सहिष्णुता कैसे रख पाते हैं? क्या आपके मन में कभी प्रतिशोध या प्रतिक्रिया के भाव जागृत नहीं होते?' गुरुदेव ने सहज मुस्कान के साथ पत्रकारों को समाहित करते हुए कहा- 'अहिंसा का साधक कटु सत्य भी नहीं बोल सकता, फिर वह किसी पर कटु आक्षेप कैसे लगा सकता है, इस बोध-पाठ ने मुझे संयत.एवं सन्तुलित रहना सिखाया है।' गुरुदेव की दृष्टि में सहिष्णुता का अर्थ यह नहीं कि अन्याय को सहन किया जाए। उनका स्पष्ट अभिमत था कि अन्याय का प्रतिकार होना चाहिए और उसके परिष्कार पर ध्यान देना चाहिए। असहिष्णु व्यक्ति दूसरे के परिष्कार या रूपान्तरण की बात नहीं सोच सकता, वह तो केवल प्रतिक्रिया करके स्वयं या दूसरे को विक्षिप्त बनाता रहता है। . सहिष्णुता के चार रूप हैं- शारीरिक सहिष्णुता, वाचिक सहिष्णुता,