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________________ २२७ साधना की निष्पत्तियां देखकर वे दुःखी एवं व्यथित हो गए। वे गुरुदेव के पास आए और बोले'आपको दुःख या पीड़ा न हो तो एक बात निवेदन करूं।' गुरुदेव ने स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया। शुक्ला जी मे विरोधी पर्चों को दिखाते हुए अपना खेद प्रकट किया। गुरुदेव ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा'बस! यही बात है, इसमें दुःख जैसी क्या बात है?' शुक्ला ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा- 'क्या इन बातों की आपको अवगति है? लोग आपके साथ ऐसा क्यों करते हैं?' गुरुदेव ने उन्हें समाहित करते हुए कहा- 'जिनकी जैसी आदत है, वे वैसा ही काम करते हैं। हम दुःख क्यों करें? हर अच्छी प्रवृत्ति का एक बार विरोध होता है, कोई अपनी बुराई नहीं छोड़ सकता तो हम अपनी अच्छाई क्यों छोड़ें?' सहजता में रमण करने वाला साधक कभी इन बातों में उलझकर दुःखी नहीं होता। जबजब जीवन में सहजता टूटती है, तनाव एवं दुःख पैदा हो जाता है। उक्त घटना प्रसंग उनकी सहज साधना का स्पष्ट निदर्शन है। ___सहजता व्यक्ति को हल्केपन की अनुभूति कराती है। यही कारण है कि विशाल धर्मसंघ के अनुशास्ता होने पर भी उन्होंने कभी भार या खिन्नता का अनुभव नहीं किया। इसका सबसे बड़ा कारण उनकी सहज वृत्ति थी। इस संदर्भ में उनका यह अनुभव अत्यन्त मार्मिक एवं प्रेरक है"संघ का नियन्ता होने पर भी मैं प्रायः निर्भार रहता हूं। भारीपन की अनुभूति तभी होती है, जब सहजता टूटती है। सहजता का राज हैतटस्थ दर्शन अर्थात् परिस्थितियों का अस्वीकार । परिस्थितियां व्यक्ति को भारी नहीं बनाती हैं, भारीपन का हेतु है उनकी स्वीकृति। स्वीकार और पलायन दोनों से मुक्त रहने वाला व्यक्ति ही स्वस्थ, दीर्घजीवी और सुखी बन सकता है।" विनोबा से पूछा गया- साधना कहां तक की जाए? उत्तर देते हुए विनोबा ने कहा- 'जब वह अपने आप होने लगे तब तक।' इस सहजावस्था को पाना ही साधक का ध्येय होता है। फिर साधक का हर प्रयत्न साधना बन जाता है। "उत्तमा सहजा वृत्तिः" संस्कृत का यह सूक्त पूज्य गुरुदेव के जीवन में साकार देखा जा सकता था। वे अपनी हार्दिक भावना इन शब्दों
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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