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साधना की निष्पत्तियां करवाने की अपेक्षा नहीं है तथा एक्सरे भी बार-बार नहीं करवाने चाहिए। यह सुनकर श्रीमती सविता रूणवाल बोली- 'डॉक्टर साहब! मेरा मन कहता है कि आप इसका एक्सरे फिर करके देखिए।' यद्यपि डॉक्टरों का मन नहीं था पर मां के आग्रह से पुनः सभी टेस्ट करवाए। पहला एक्सरे आते ही डॉक्टर आश्चर्यचकित हो गया। एक-एक कर सारे परीक्षण किए। परीक्षणों का यह परिमाण आया कि बच्चे के हृदय में कोई छेद नहीं है। डॉक्टर ने कहा कि मैं स्वयं नहीं समझ पा रहा हूं कि क्या बात है पर यह निश्चित है कि बच्चे के हृदय में वर्षों से जो छेद देख रहे थे, वह अब नहीं है अतः ऑपरेशन की जरूरत नहीं है। लगता है कि आपका भाग्य बहुत तेज है। धीरे-धीरे बच्चा चलने लगा। यद्यपि वह अच्छी तरह बोलता नहीं है पर रूणवाल दम्पत्ति को विश्वास है कि गुरुदेव की कृपा से बच्चा अवश्य बोलेगा।
कलकत्ता प्रवास में पूज्य गुरुदेव विवेकानंद रोड पर स्थित चौपड़ों के मकान में विराज रहे थे। दर्शनार्थियों की भीड़ में एक बंगाली दम्पत्ति गुरुदेव के दर्शन करने आया। आते ही बंगाली भाई श्रद्धा भरे शब्दों में कहने लगा- "आप हमारे लिए साक्षात् भगवान हैं। यह मेरी पत्नी वर्षों से क्षय रोग ग्रस्त थी। अनेक उपचार से भी कोई लाभ नहीं हआ। बीमारी खतरनाक स्थिति को प्राप्त हो गयी। मेरा पक्का विश्वास हो गया था कि अब यह बचने वाली नहीं है। कुछ दिनों पूर्व मैंने आपका प्रवचन सुना। मुझे उसमें दिव्य ध्वनि का अनुभव हुआ। दूसरे दिन प्रवचन पण्डाल से लौटते वक्त आपकी चरणधूलि साथ लेकर गया। उसे मैंने स्वच्छ डिब्बे में रखा और दवा के रूप में प्रतिदिन उसको दिया। उसने श्रद्धा से आपकी चरण-रंज का सेवन किया। आपकी चरणधूलि का ही प्रभाव है कि आज मेरी धर्मपत्नी आपके समक्ष पूर्णतया स्वस्थ होकर खड़ी है।"
साधना के इन दृश्य परिणामों एवं चमत्कारों में पूज्य गुरुदेव की अधिक आस्था नहीं थी। उनका स्पष्ट मंतव्य था कि दृश्य परिणाम एवं चमत्कार के लिए साधना होनी भी नहीं चाहिए। ऐसी साधना एक सीमा तक पहुंचकर सीमित हो जाती है फिर भी यह बात सही है कि साधना से आत्मोपलब्धि के साथ बाह्य उपलब्धि भी होती है। इसके प्रति साधक की