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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
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असाध्य बीमारी वाले लोग, जो जीवन से हताश हो चुके थे, वे पूज्य गुरुदेव . की चरणधूलि के प्रयोग से पूर्ण स्वस्थ हो गए। अनेक लोग उनके मुख से मंगलपाठ सुनने मात्र से शांति एवं स्वास्थ्य का अनुभव करने लगे। 'गुरु के प्रभाव से गूंगा बोलने लगता है और पंगू पहाड़ पर चढ़ने लगता है।' इस उक्ति को सार्थक करने वाली उनके जीवन की अनेक घटनाएं हैं। यहां कुछ घटना-प्रसंग ही प्रस्तुत किए जा रहे हैं ।
भीनासर निवासी छगनलालजी सेठिया आदि पाँच भाई पूज्य गुरुदेव के दर्शनार्थ बीकानेर से गाड़ी में चढ़े। रेलगाड़ी में चढ़ते समय भीड़ कारण उनके मुंह पर चोट लगी। गाड़ी में चढ़ते ही चोट ने इतना विस्तार लिया कि मुंह पर गहरे घाव हो गए, मवाद झरने लगा, चारों ओर सूजन आ गयी और पूरा चेहरा लाल हो गया । स्थिति देखकर भाई उन्हें वापस भीनासर ले जाने के लिए तैयार हुए लेकिन छगनलालजी ने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए गुरु- दर्शन के बिना घर नहीं जाऊंगा। वे अपने निर्णय पर अडिग रहे। गुरुदेव उन दिनों मेवाड़ में थे। अपने भाइयों के साथ दर्शन करके वे स्वयं को धन्य अनुभव करने लगे। दूसरे दिन उन्होंने गुरुदेव की चरणरज ली और उस पानी से मुंह के घावों की सफाई की। न दवा ली और न डॉक्टर को दिखाया। केवल चरणरज को ही दवा बना लिया। दो तीन दिन में सूजन और लालिमा कम हो गयी। मवाद आना बंद हो गया। धीरे-धीरे वे बिल्कुल स्वस्थ हो गए।
जयसिंहपुर के पूनमचंदजी रूणवाल के तीसरा बच्चा जन्म से ही कमजोर था । न वह बोल सकता था और न ही चल सकता था । बम्बई के डॉक्टर ने परीक्षण करके बताया कि बच्चे के हृदय में छेद है अतः इसके हृदय का ऑपरेशन होगा। बम्बई में एक्सरे करवाकर ऑपरेशन की तारीख निश्चित हो गयी । एक दिन पति-पत्नी के मन में विकल्प उठा कि अभी ऑपरेशन की देरी है अतः गुरुदेव के दर्शन करके मंगलपाठ सुनवा दें। उस समय गुरुदेव का प्रवास लाडनूं में था। वे लाडनूं आए और दो दिन में तीन बार गुरुदेव के मुख से मंगलपाठ सुनाया। ऑपरेशन के दो दिन पूर्व वे बम्बई पहुंचे। बच्चे के दसों बीसों टेस्ट हो चुके थे। पहले के सब रिकार्ड बता रहे थे कि ऑपरेशन जल्दी होना चाहिए। डॉक्टरों ने कहा- 'ई.सी.जी.