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________________ २२३ साधना की निष्पत्तियां भारतवर्ष की पुण्यभूमि में अनेक साधकों ने अनासक्ति और अनाकांक्षा के शिखर पर आरोहण करने का प्रयत्न किया है। पूज्य गुरुदेव के साधक-मानस पर रामकृष्ण परमहंस एवं विवेकानंद के घटना-प्रसंग का विशेष प्रभाव था। प्रवचन के दौरान अनेक बार वे विवेकानन्द के जीवन का घटना-प्रसंग सुनाते थे। युवक नरेन्द्र जब रामकृष्ण के चरणों में उपस्थित हुआ तो रामकृष्ण ने पूछा- 'क्या तुम अणिमा लब्धि पाना चाहते हो? उससे तुम बिल्कुल छोटे हो सकते हो। महिमा लब्धि से तम मनचाहा आकार बढ़ा सकते हो। हल्के और भारी बनने की भी लब्धियां हैं। यदि चाहो तो आकाशगामिनी विद्या भी तुम्हें दे सकता हूं। बोलो तुम्हें क्या चाहिए?' रामकृष्ण की बात सुनकर नरेन्द्र की मुखमुद्रा गंभीर हो गयी। उसने प्रतिप्रश्न पूछते हुए कहा- 'इन सबसे मुझे क्या मिलेगा?' स्वामी रामकृष्ण ने कहा- 'इससे तुम्हारा नाम होगा प्रतिष्ठा और ख्याति बढ़ जायेगी।' नरेन्द्र ने कहा- 'गुरुदेव! मुझे यह सब नहीं चाहिए। यदि आप कुछ देना ही चाहते हैं तो वह तत्त्व दीजिए, जिससे मैं स्वयं को पा सकू।' . रामकृष्ण ने उसकी आकृति को पढ़ा, अंत:करण को परखा और उसे अध्यात्म-विद्या के योग्य घोषित कर दिया। उनकी वर्षों की खोज पूरी हुई और उसे अपना शिष्य बना लिया। भारतीय अध्यात्म-विद्या को उजागर करके उसे पाश्चात्य देशों में प्रतिष्ठित करने हेतु स्वामी विवेकानंद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी इसी अनासक्ति ने उन्हें विश्व प्रसिद्ध बना दिया। __ साधक चमत्कार एवं प्रलोभनों से दूर रहता है, यह बात यथार्थ है पर यह भी उतना ही सत्य है कि साधना के प्रयोग से स्वतः ऐसे चमत्कार घटित होते हैं, जहां तर्क-शक्ति भी कुंठित हो जाती है। पूज्य गुरुदेव साधना के उस शिखर पर आसीन थे, जहां उनका नाम ही मंत्राक्षर की भांति चामत्कारिक बन गया था। गुरुदेव को ७० वर्ष की लम्बी संयमसाधना से अनेक आंतरिक उपलब्धियां प्राप्त थीं। आगमों में वर्णित आमदैषधि, मलौषधि आदि अनेक लब्धियां उनको सहज प्राप्त थीं पर वे उनसे निर्लिप्त रहे। उनकी चरणधूलि से जुड़े सैकड़ों चमत्कार हैं। ऐसी
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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