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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
बोले- 'क्या वह रोटी खराब थी ?' गुरुदेव ने मुस्कराते हुए कहा'अनासक्ति के बिना किसी भी स्थिति में आनंद की उपलब्धि नहीं हो सकती। रोटी तो अच्छी ही थी पर उसमें घी दुर्गन्धयुक्त था । ' प्रस्तुत घटना उनकी विशिष्ट अनासक्त साधना की द्योतक है।
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अनासक्त होकर कर्म करना अकर्म की ओर पदन्यास करने की प्रक्रिया है। साधना के साथ संग, आसक्ति या कामना का योग होते ही उसकी उत्कृष्टता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। पूज्य गुरुदेव का मानना था कि जब तक मनुष्य मूर्च्छा का आवरण नहीं उतारेगा, सुख का दर्शन भी नहीं हो सकेगा। बहुत कठिन है मूर्च्छा के चक्रव्यूह को तोड़ना । एक बार में पूरी सफलता न भी मिले, उसके लिए प्रयास तो करना होगा । चक्रव्यूह
प्रवेश तो करना होगा। एक सीमा तक ही सही, मूर्च्छा टूटे बिना सुख की अनुभूति नहीं हो सकती, प्रसन्नता नहीं मिल सकती क्योंकि अति आसक्ति दुःख है । हुंकार के साथ अनासक्ति की प्रेरणा देते हुए पूज्य गुरुदेव गा उठे
तू स्वयं है दिव्य ज्योति, है विलक्षण शक्ति तेरी, पर तुझे करती हतप्रभ, मोह-माया की अंधेरी । अपरिमित विभुता प्रपूरित, हो रहा क्यों तू भिखारी ? जो अतुल संवेदना वह, क्यों हुई है सुप्त सारी ॥
सन् १९५९ का घटना - प्रसंग है। बिहार के जोगिया गांव में गुरुदेव विराजमान थे । कुछ बहिनें गुरुदेव के चरणों में पहुंचीं । गुरुदेव ने सहजता से पूछा - 'कहां की रहने वाली हो ?' गुरुदेव के इस प्रश्न ने उनके दुःख को प्रकट कर दिया । वे दुःख विगलित स्वरों में बोली‘हमारी सारी सम्पत्ति पाकिस्तान में रह गई। हमें कुछ नहीं मिला।' गुरुदेव ने उनकी वेदना को समाहित करके शांति का रहस्य खोलते हुए कहा'बहिनों ! अध्यात्म का सूत्र यह है कि पदार्थ में न सुख है और न दुःख । धन का व्यामोह और पदार्थासक्ति ही दुःख का हेतु है । यह सत्य है कि आप पाकिस्तान से कुछ नहीं लाईं लेकिन गहराई से सोचो जब आदमी पैदा होता है तो अपने साथ क्या लाता है और मर जाने पर अपने साथ क्या ले जाता है ? मरने वाले के लिए सारा संसार पाकिस्तान बन जाता है। धन