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________________ २११ साधना की निष्पत्तियां लेकिन गुरुदेव के चेहरे पर क्रोध एवं उत्तेजना की झलक तक नहीं देखी गयी। उज्जैन में उस भाई द्वारा इत्र लगाने पर भी मुख पर प्रसन्नता या गर्व की रेखाएं नहीं उभरीं। 'वासी-चंदणकप्पो य' महावीर की यह वाणी उनके जीवन में साक्षात् घटित हो रही थी। कवि की ये पंक्तियां पूज्य गुरुदेव पर यथार्थ चरितार्थ होती थीं कोउक वंदत कोउक निंदत, कोउक भाव से देत है मच्छन, कोउक आय लगावत चंदन, कोउक डारत है तन तच्छन। कोउ कहै यह मूरख दीसत, कोउ कहै नहीं है रे विचच्छन, 'सुंदर' कोहू पे राग न रोष तो, ये सब जानिये संत के लच्छन॥ निन्दा सुनकर उत्तेजित न होने वाले अनेक व्यक्ति मिल सकते हैं पर प्रशस्ति एवं प्रशंसा सुनकर अप्रभावित रहना बहुत कठिन है। किसी पाश्चात्त्य विचारक ने लिखा है- 'प्रसिद्धि बड़े आदमियों की सबसे अंतिम कमजोरी है।' पर गणाधिपति तुलसी को इसका अपवाद कहा जा सकता है। वे अनेक बार इस बात को दोहराते थे कि मुझे प्रशस्ति में रस नहीं आता। राष्ट्र के सर्वोच्च व्यक्तियों द्वारा उनका स्वागत एवं सम्मान हुआ पर अहंकार एवं मद उनको छू तक नहीं गया। प्रायः सार्वजनिक अभिनन्दन-सभाओं में वे इस बात को दोहराते रहते थे- 'यह स्वागत मेरा नहीं, आध्यात्म का है, सत्य, अहिंसा और मैत्री का है, भारतीय संस्कृति का है और अणुव्रत का है।' यह घटना प्रसंग उनकी निस्पृहता एवं प्रशस्ति से अप्रभावित रहने के विशिष्ट मनोभाव को प्रकट करने वाला है। एक बार कानोड़ के एक पटेल परिवार पर भूमि के लिए किसी व्यक्ति ने केश दायर कर दिया। कई दिनों तक केश चला पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला। आखिर पटेल भाई ने गुरुदेव के नाम का स्मरण करते हुए मन ही मन प्रार्थना की- 'गुरुदेव! मुझे उबारिए, सांच पर आंच आ रही है। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक आपके दर्शन नहीं कर लूंगा, तब तक मैं घी और गेहूं नहीं खाऊंगा।' आस्था और संकल्प ने चमत्कार दिखाया और वह अदालत में मुकदमा जीत गया। परिस्थितिवश वह दो माह तक गुरुदेव के दर्शन नहीं कर सका। दो मास के बाद जब उसने पूज्य गुरुदेव के दर्शन किए, तब उसने सारा
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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