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________________ २०९ साधना की निष्पत्तियां वह प्रतीक्षा पूरी हो गयी। मैं इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ, इससे बढ़कर आत्मतोष क्या हो सकता है?" गुरुदेव तुलसी की अभय-साधना की सिद्धि में पूज्य कालूगणी का प्रशिक्षण अधिक उपयोगी बना। इस सन्दर्भ में उनकी यह स्वीकारोक्तियां पठनीय हैं * "सत्य की अनुपालना के लिए मुझे अपने गुरु से प्रशिक्षण मिला- डरो मत। न बुढ़ापे से डरो, न रोग से डरो, न शोक-संताप से डरो और न मौत से डरो।" * 'मैंने अपने गुरुवर से अभय का बोध-पाठ पढ़ा, तब मैं समझ सका कि अभय पीठिका है अहिंसा और सत्य की। इसके बिना अहिंसा और सत्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती।' अभय की इन कसौटियों पर पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवन को कसा था और जन-जन को अभय होने का महामंत्र दिया था। उनकी अभयचेतना के आलोक में अनेक साधक अपना मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे, ऐसा विश्वास है। साम्ययोग समभाव का विकास साधना का प्रत्यक्ष फल है। यदि साधना के साथ समता का विकास नहीं है तो समझना चाहिए साधक की दिशा सही नहीं है। समता साधना की कुंजी है, जिसे प्राप्त कर हर समस्या के ताले को खोला जा सकता है। पूज्य गुरुदेव की हर प्रवृत्ति में समता के दर्शन होते थे। जीवन की उतार-चढ़ाव की स्थिति में भी उनका मानसिक सन्तुलन कभी डोलता नहीं था। स्थितप्रज्ञ की भांति किसी भी अप्रिय घटना को द्रष्टाभाव से देखकर उसको समाधान तक पहुंचा देना उनकी सहज प्रवृत्ति थी। अपने इकसठवें जन्मदिन पर अपनी अनुभूति व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा- 'इस साठ वर्षों में मैंने दो प्रमुख कार्य किए हैं- मूर्छा का परित्याग और समता की साधना। मुझे प्रशंसा भी खूब मिली और निंदा का शिकार भी होना पड़ा। मुझे सम्मान मिलता है तो मैं फूलता नहीं और अपमान मिलता है तो कुण्ठित नहीं होता। इसी कारण मैं निंदा और प्रशंसा इन दोनों स्थितियों में समान रूप से गति कर सका। मैं इस बात से प्रसन्न हूं कि मेरी जिंदगी विरोध और अभिनन्दनों का संगम रही है। एक स्थान
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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