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________________ साधना की निष्पत्तियां गुरुदेव तुलसी ने अभय को अपना आदर्श माना । वे अपने संकल्प की अभिव्यक्ति इस भाषा में देते थे- 'मैं तीर्थंकर का अनुगामी हूं। उनकी अनासक्ति और अभय - साधना में मेरी आस्था है, मैं उसका अभ्यास एवं प्रयोग कर रहा हूं।" इसी संकल्प का प्रतिफल था कि बड़े से बड़े विरोध एवं झंझावात में भय की लहर भी उनके मानस का स्पर्श नहीं कर पाती थी। हर जोखिम का स्वागत करने में वे आनन्द का अनुभव करते थे । अभय-साधना की सिद्धि से असंभव जैसा शब्द उन्होंने अपने मानस से बाहर निकाल दिया था। हर बाधा एवं अवरोध को चीरकर नया सूर्य उगाना उनकी अभिरुचि का विषय था । आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में अभय का बाह्य लक्षण है- सहज प्रसन्नता । अभय साधक दुःख को जानता है लेकिन उसे भोगता नहीं अतः कोई भी परिस्थिति उसे भयभीत या विचलित नहीं कर पाती । " २०३ 44 1 कुछ लोगों ने गुरुदेव के पास आकर आक्रोश भरी भाषा में कहा- 'आप संस्कार-निर्माण का कार्य करें किन्तु यदि लोगों को जैन बनायेंगे तो रायपुर और चूरू की घटनाएं दुहराई जा सकती हैं।' गुरुदेव ने साहस के साथ उत्तर देते हुए कहा- 'मेरा किसी को जैन बनाने का लक्ष्य नहीं है। मेरा यह विश्वास भी नहीं है कि किसी के बनाने से कोई कुछ बन जायेगा। मेरा लक्ष्य है आदमी को आदमी बनाना । अपने आप ही कोई कुछ बनता है और इसके लिए रायपुर, चूरू की घटनाएं पांच सौ बार भी दुहराई जाती हैं तो मुझे कोई भय नहीं है । मेरा कार्य मनुष्य को संस्कारी बनाना है । जिन लोगों को दलित और उपेक्षित कर दिया है, उन्हें ऊपर उठाना है, इसके बाद वे क्या बनते हैं, इसकी चिन्ता मैं क्यों करूं?" यही प्रसंग यदि किसी साहसहीन, भयभीत व्यक्ति के सामने उपस्थित होता तो वह स्वीकृत पथ से विचलित हो जाता। गुरुदेव की इस विशेषता का अंकन आचार्य महाप्रज्ञजी के शब्दों में पठनीय है- "सत्य और अभय की समन्विति ने आचार्य श्री को यथार्थ कहने की शक्ति दी है। इसीलिए उनमें अपनी दुर्बलताओं को स्वीकार करने और दूसरों की दुर्बलताओं को उन्हीं के सन्मुख कहने की क्षमता विकसित हुई है।" भगवान् महावीर कहते हैं कि 'भीतो भरे न नित्थरेज्जा' अर्थात् भयभीत आदमी किसी वजनी दायित्व का निर्वाह नहीं कर सकता और न
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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