SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी . .. १९६ अल्पज्ञता का अहसास हुआ, उसे वे तत्काल समूह के मध्य प्रकट कर देते थे। इस संदर्भ में यहां कुछ प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किए जा रहे हैं - "कवि साहित्यकार आदि लेखन के संदर्भ में जब मूड की बात करते तो यह बात मेरी समझ में नहीं आती थी। मैं मानता था कि व्यक्ति लिखने के लिए संकल्पित हो जाए तो किसी भी समय लिखा जा सकता है। किन्तु 'व्यवहारबोध' लिखने का संकल्प वर्षों तक फलित नहीं हुआ। अब मैं सोचता हूं कि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अनुकूलता के बिना कोई काम सम्पादित नहीं होता। लेखक का मूड भी इन्हीं में से किसी का अंग होगा।" एक बार पूज्य गुरुदेव के पैर की बिवाई फट गई, उस अनुभव को सुनाते हुए गुरुदेव फरमाते हैं- "किसी संत की बिवाई फटती तो मैं कहता- "इतने बड़े पैर में यदि बिवाई फट गई तो क्या हुआ? पर एक बार मेरे पैर की बिवाई फट गई तब मुझे महसूस हुआ कि यह लोकोक्ति सत्य ही है- 'जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई' मुझे लगता है कि जब कभी मैंने स्वयं को बड़ा माना, तत्काल शिक्षा मिल गई।" उत्तरप्रदेश की यात्रा के दौरान गुरुदेव इलाहबाद पधारे। वहां प्रवचन में गुरुदेव ने विस्तार से जैन मुनि की भिक्षाचर्या की अवगति दी। प्रवचन में राजर्षि टण्डन भी उपस्थित थे। प्रवचन के बाद उन्होंने गुरुदेव को अपने घर भिक्षा के लिए आग्रह किया। गुरुदेव स्वरूपरानी पार्क से जैन धर्मशाला पधार गए। साधु-साध्वियों की भिक्षा एवं आहार लगभग २ बजे सम्पन्न हुआ। आहार सम्पन्न होने के बाद गुरुदेव को टण्डनजी की प्रार्थना याद आई। संतों से पूछने पर पता चला कि उनके घर भिक्षा के लिए कोई नहीं गया था। गुरुदेव ने सोचा अब तो उनके वहां सबने भोजन कर लिया होगा। फिर भी जब मैंने उनकी प्रार्थना स्वीकार की है तो इस विस्मृति और प्रमाद का प्रायश्चित्त करने के लिए मुझे स्वयं वहां जाना चाहिए। गुरुदेव संतों के साथ टण्डनजी के यहां पहुंचे। टण्डनजी सपरिवार साधुओं का इंतजार कर रहे थे। गुरुदेव ने वहां पहुंचते ही खेद व्यक्त करते हुए कहा'टण्डनजी! आपने भिक्षा के लिए अनुरोध किया था पर हम भूल गए। अब तो आप खाना खा चुके होंगे।' टण्डनजी ने कहा- 'आचार्यजी ! आज हम पहले खाना कैसे खा लेते? आपने प्रवचन में कहा था कि जैन साधुओं के
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy