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________________ १९५ साधना की निष्पत्तियां 44 सिद्ध नहीं, साधक हूं।' लोग उन्हें पूर्ण मानकर मार्गदर्शन प्राप्त करने आते पर वे कहते थे— “ मनुष्य सब दृष्टियों से पूर्ण नहीं होता। कुछ न कुछ अपूर्णताएं रह ही जाती हैं । मेरे में भी कुछ अपूर्णताएं हैं । ' सत्योन्मुख व्यक्ति ही अपनी अपूर्णता का अहसास कर सकता है क्योंकि वह सत्य की विराटता से परिचित होता है । वह मानता है कि वीतराग व्यक्ति ही पूर्ण हो सकता है, अन्य नहीं। उनका मंतव्य था कि प्रारम्भिक स्टेज में साधक सब बातों में दक्षता प्राप्त करे किन्तु यदि भूल छिपाने में दक्षता प्राप्त करता है तो यह बहुत बड़ी माया और आत्मप्रवंचना है ।" जो साधक यह मानता है कि मुझसे कभी भूल होती ही नहीं, यह उसका झूठा अहंकार है । ऐसे लोगों को प्रेरणा देने के लिए उनका कवि मानस बोल उठा औरों की भूलों को भूलें, अपनी भूल सुधारें । कभी न करता मैं गलती, इस अहं वृत्ति को मारें ॥ जो नेता अपने अनुयायियों से केवल प्रशंसा सुनना चाहे, वह कभी उनके मन में अपना विशिष्ट स्थान नहीं बना पाता। असफलता एवं स्खलना सुनने की क्षमता भी उसमें होनी चाहिए। महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी द्वारा जब उनका यात्रा - विवरण लिखा गया तो उस पर टिप्पणी करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा- " तुमने श्रद्धा के कारण सफलता का पक्ष अधिक स्पर्श किया पर इससे यथार्थ रूप सामने नहीं आता। दूसरा पक्ष जो असफलता का है, उसे भी अभिव्यक्ति देनी चाहिए, जिससे पाठक को वास्तविकता मिले किन्तु प्रायः ऐसा नहीं होता और इसीलिए लोग इतिहास को अधूरा मानते हैं।' इन शब्दों में उनका साधक हृदय बोल रहा है। व्यक्ति पूर्वाग्रह एवं अहं से इतना जकड़ा हुआ होता है कि अपनी गलती का अहसास होने पर भी उसे स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पाता। इस संदर्भ में खलील जिब्रान का अनुभवपूत वक्तव्य सबको आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देने वाला है - "मैंने कुछ क्षणों में क्षुद्रता का अनुभव किया। जब मैंने अपराध किया और अपराध का समर्थन करने के लिए पाप पक्ष का समर्थन किया।" अपनी क्षुद्रता देखना महानता का लक्षण है । साधक व्यक्ति ही अपनी भूल या त्रुटि के प्रति जागरूक हो सकता है। जहां भी पूज्य गुरुदेव को अपने विचारों में परिवर्तन की अपेक्षा हुई या अपनी
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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