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________________ १९२ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी - एक बार कपाट की चौखट से गुरुदेव को ठोकर लग गई। इस कारण वे संभल नहीं पाए और गिर पड़े। गुरुदेव तुरन्त उठे और संतों से बोले- "चलते-चलते मेरी दृष्टि गमनपथ से हट गई थी अतः मुझे ठोकर लग गई। ईर्यासमिति की विस्मृति का दंड मुझे मिल गया। एक-एक कदम देखकर आगे बढ़ना साधु जीवन का व्रत है। इस व्रत में एक क्षण की भूल ने मुझे सजग कर दिया।" सामान्य व्यक्ति ऐसी स्थिति में दूसरों की त्रुटि को ही देखता पर गुरुदेव का साधक मन हर घटना को अपने प्रमाद से जोड़कर नयी प्रेरणा ग्रहण कर लेता था। उनका मानना था कि गलतियों को छिपाने में दक्षता प्राप्त करने वाला विकास के पथ पर आरोहण नहीं कर सकता। जो अपनी बुराई को बुराई समझता है, वही बदलाव की दिशा में प्रस्थान कर सकता है। सन् १९५७ में बीदासर के पास एक गांव में गुरुदेव को जुखाम हो गया। संतों के आग्रह पर गुरुदेव ने एक टेबलेट लेकर विहार कर दिया पर गोली की प्रतिक्रिया हुई। बेचैनी बढ़ गयी। रात भर नींद भी नहीं आई। सवेरे गुरुदेव ने फरमाया- 'सामान्यतः जुखाम में तीन दिन दवा नहीं लेनी चाहिए पर मैंने विधि को भंग करके भूल की अतः दण्ड तो मुझे मिलना ही चाहिए। मुझे गोली की प्रतिक्रिया भुगतनी पड़ी।' दूसरों द्वारा की गयी सत्-असत् आलोचना को समभाव से सुनना महानता का असाधारण लक्षण है। विरोधियों द्वारा की गई आलोचना को गुरुदेव इतनी तटस्थता से सुनते कि कभी-कभी तो विरोधकर्ता स्वयं दंग रह जाता और श्रद्धाप्रणत हो जाता। दूसरों द्वारा की गई आलोचना को गुरुदेव प्रगति का कारण मानते थे। उनका मानना था कि स्वस्थ आलोचना प्रशस्ति से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे बुराइयों को निकालने का अवसर मिलता है। सामान्यतः दूसरों के द्वारा त्रुटि पर अंगुलिनिर्देश किए जाने पर व्यक्ति आगबबूला हो जाता है। ऐसे लोगों के लिए पूज्य गुरुदेव का यह चिंतन सोच की नयी खिड़कियां खोलने वाला है- "मैं चाहता हूं मुझे कोई मेरी गलती बताए तो मैं क्षमा का परिचय दूं और सहिष्णुता से उसे सुनं।" काव्य की पंक्तियों में साधकों को वे यही प्रतिबोध देते हैं अपनी दुर्बलता कमी, स्खलना और प्रमाद। पहचानें पूछे करें, परिष्कार अविवाद।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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