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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी को दृष्टिगत रखते हुए मैं तटस्थ भाव से प्रशस्तियां सुनता हूं। मेरा सच्चा जन्मदिन आप तभी मनाएंगे जब आपका जीवन असत् से सत्, भोग से त्याग, राग से विराग, अंधकार से ज्योति एवं बहिर्मुखता से अन्तर्मुखता की
ओर गति करेगा। ये शब्द गिरिकंदरा में बैठा कोई योगी कहता तो आश्चर्य जैसा कुछ नहीं लगता लेकिन प्रतिष्ठा और प्रशंसा के वायुमंडल में सांस लेने वाले व्यक्ति से जब यह बात सुनी तो लगा कि प्रदूषणों की दुनिया में जीता हुआ भी वह प्रदूषण से मुक्त था। अनाग्रह
साधक और आग्रह-ये दोनों ३६ के अंक के समान विपरीत दिशोन्मुख हैं। साधक सभी पूर्वाग्रहों एवं जड़ मान्यताओं से दूर रहता है क्योंकि वह जानता है कि अनाग्रही व्यक्ति ही सत्यान्वेषक हो सकता है। पूज्य गुरुदेव का जीवन सभी प्रकार के आग्रहों से मुक्त था। एक संप्रदाय विशेष से आबद्ध होने पर भी वे सत्य की असीमता एवं विराटता से परिचित थे। महावीर के अनेकान्त को उन्होंने जीवन-व्यवहार के साथ जोड़ने का प्रयत्न किया था। इस संदर्भ में वे अपना अनुभव बताते थे"आग्रह का मेरे जीवन में कोई स्थान नहीं है। मैं सदैव इससे बचने का प्रयत्न करता हूं क्योंकि स्याद्वाद से मैं यह सीख पाया हूं कि सत्य उसी व्यक्ति को प्राप्त होता है, जिसके मन में अपनी मान्यताओं का कोई आग्रह नहीं होता।"
___ वैचारिक लचीलापन व्यक्ति को विविध कोणों से देखने और सोचने का अवकाश देता है। आचार्यों ने अनेकांत की दार्शनिक व्याख्या खूब की किन्तु उसे जीवन-व्यवहार के साथ जोड़ने का प्रयत्न नहीं किया। पूज्य गुरुदेव ने जन-जीवन की समस्याओं को सुलझाने में अनेकान्त का भरपूर प्रयोग किया। अनेकांत को व्यावहारिक बनाकर उसे जन-जीवन में प्रतिष्ठित करने की उनकी तड़प इन पंक्तियों में देखी जा सकती है'हमारी सबसे बड़ी गलती यही रही है कि तत्त्व की व्याख्या में हमने अनेकांत को जोड़ा पर जीवन की व्याख्या में उसे जोड़ना भूल गए, जबकि महावीर ने जीवन के हर कोण के साथ अनेकांत को जोड़ने का प्रयत्न किया है।"
एकांत दृष्टि वाला व्यक्ति आग्रही होता है। मैं कहता हूं वही