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साधना की निष्पत्तियां
तक पहंचे। मैं अभिनंदन-पत्रों से खश होने वाला नहीं हैं। मैं नहीं चाहता कि स्थान-स्थान पर मुझे ये अभिनंदन-पत्र मिलें। हार्दिक भावनाएं मौखिक रूप से या कोई एक पत्र के द्वारा भी व्यक्त की जा सकती हैं। फिर सैकड़ों की संख्या में उनका प्रकाशन हो, यह सिवाय धन-अपव्यय के विशेष क्या मूल्य रखता है?"
*"मैं गुजरात आया हूं, यह आप लोगों पर एहसान नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। मेरा विश्वास निष्काम कर्म में है। निष्काम कर्म फलदायी होता है, इस आस्था को लेकर ही मैं घूम रहा हूं और काम कर रहा हूं।"
। आज दिखावा, प्रदर्शन और झूठे मापदण्ड हेतु नित नए आयोजन मनाने की उमंग रखी जाती है। एक बार शादी होने के बाद भी हर साल आडम्बर के साथ शादी का रिहर्सल किया जाता है। शादी की पच्चीसवीं एवं पचासवीं वर्षगांठ का तो कहना ही क्या? गुरुदेव ने समाज की इस कमजोरी को मिटाने के लिए केवल मौखिक उपदेश ही नहीं, बल्कि अपने जीवन से सक्रिय प्रशिक्षण दिया। आचार्य काल के २५ वर्ष पूरे होने पर सबका आग्रह रहा कि कोई बड़ा आयोजन किया जाए। संघ के इस निवेदन पर स्पष्ट निर्देश देते हुए आपने कहा- “धवल मेरा साध्य है। कृष्ण को त्याग कर धवल का वरण करना मुझे सदा प्रिय रहा है। इसलिए इसका समारोह मैं सदा मनाता हूं। यह धवल-समारोह यदि २५ वर्षों का प्रतीक हो तो मुझे इससे कोई लगाव नहीं है और यदि जीवन की धवलिमा का प्रतीक हो तो यह समारोह मेरा ही नहीं है, उन सबका है, जो जीवन में धवल-पक्ष का प्रतिष्ठापन करना चाहते हैं। उन सबका है, जो अनुशासन, एकता व मैत्री के दीप संजोते हैं। नैतिक व चरित्र-विकास में विश्वास बढ़ाने का यत्न हुआ तो मैं समझूगा धवल समारोह बन पाया है। अनुशासन, आचार-शुद्धि और एकता की लौ विशेष प्रज्वलित हुई तो मैं समझूगा कि मेरे २५ वर्ष सचमुच समारोह के मानदंड बन पाए हैं।'
___ भक्त हृदय से उठी श्रद्धा की हिलोरें और प्रशस्तियां उनके साधक मानस को बांध नहीं पाती थीं। वे अनेक बार अपने जन्मदिन पर यह विचार व्यक्त करते थे कि जन्मदिन के अवसर पर प्रशस्ति मुझे कतई पसंद नहीं पर आपकी कोमल भावनाओं को तोड़ना भी उचित नहीं है। इस बात