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________________ १८२ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी सेवाएं समर्पित हैं। नेहरूजी इस बात से बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें आश्चर्य इस बात का हुआ कि आज भी ऐसे निस्पृह संत भारत में विद्यमान हैं, जो नि:स्वार्थभाव से केवल देते ही हैं, लेते नहीं। कोई भी उपाधि या सम्मान उनके साधक मानस में चेप, आसक्ति या लगाव पैदा नहीं कर पाता था। वे कहते थे कि ओढ़ी हुई उपाधियां मुझे व्याधियां लगती हैं। मैं किसी भी उपाधि को ओढने में दिलचस्पी नहीं रखता। विद्यापीठ परिवार की ओर से जब उन्हें 'भारत ज्योति' अलंकरण से विभूषित किया गया तो लोगों ने कहा कि आपको तो विश्व ज्योति से सम्मानित किया जाना चाहिए। उस समय उनके मुख से निःसृत वाणी उनकी आध्यात्मिक एवं निस्पृह व्यक्तित्व की ज्योति विकीर्ण कर रही है- "विद्यापीठ परिवार ने मुझे 'भारत ज्योति' अलंकरण से सम्मानित किया पर मैं चाहता हूं कि मैं आत्मज्योति बनूं।" इसी प्रकार जब उनके नाम के आगे अणुव्रत अनुशास्ता का प्रयोग किया जाने लगा तो तत्काल अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा- 'अणुव्रत अनुशास्ता कोई पद नहीं है। न तो किसी ने मुझे यह पद दिया है और न मैंने इस सम्बोधन को पद की दृष्टि से स्वीकार ही किया है। यह तो एक विशेषण है। पहले मुझे अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तक कहा जाता था। इन वर्षों में अणुव्रत अनुशास्ता शब्द अधिक प्रचलित हो गया है। अनुशास्ता का अर्थ है-प्रशिक्षक। अणुव्रत का प्रशिक्षण देना मेरे कार्यक्रमों का एक अंग है। इसलिए इस शब्द-प्रयोग पर मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यदि इसे पद माना जाता है तो मैं इससे मुक्त होने की बात भी सोच सकता हूं।' वस्तुतः इतिहास में सात्विक गौरव का अध्याय वे ही व्यक्ति जोड़ सकते हैं, जो गौरव से सर्वथा विरक्त रहकर सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय चलें। निष्काम कर्म अध्यात्म का फलित है। आध्यात्मिक व्यक्ति ही इस दृष्टिकोण का विकास कर सकते हैं। समय-समय पर उनके मुखारविन्द से निःसृत ये अभिव्यक्तियां उनकी इसी महान् वृत्ति को प्रकट करने वाली हैं * "मुझे मूल्यांकन की चिंता नहीं। मुझे आत्मतोष है कि मैं जीवन भर ईमानदारी पूर्वक मानवता के कल्याण हेतु कार्य करता रहूं।" * "मैं चाहता हूं कि मेरे दिल की आवाज जन-जन के दिलों
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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