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________________ १७८ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी किसी आकांक्षा या आशा से बंधकर साधना करने वाला साधक उपलब्धि के अभाव में निराश और हताश हो जाता है किन्तु पूज्य गुरुदेव निष्कामभाव से निरन्तर आत्म-साधना और जन-उत्थान करने का भीष्मव्रत धारण किए हुए थे। अपने ५८वें जन्मदिन पर सम्पूर्ण मानव-जाति को विशेष संदेश देते हुए उन्होंने कहा- "निष्काम काम करने की प्रेरणा देने के लिए मैं अपने आपको सक्रिय रूप से प्रस्तुत करना चाहता हूं। यदि काम के पीछे नाम, प्रतिष्ठा आदि की भावना है तो काम करने में मजा नहीं आता। निष्काम कर्म फलदायी होता है, इस आस्था को लेकर ही मैं घूम रहा हूं और काम कर रहा हूं।" पंजाब समझौते में पूज्य गुरुदेव की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। स्वयं गृहमंत्री आमेट में गुरुदेव को बधाई देने पहुंचे। अनेक राष्ट्रीय स्तर के लोगों की बधाइयां गुरुदेव तक पहुंचीं किन्तु गुरुदेव ने इस प्रसंग पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- "लम्बे संघर्ष के बाद नए सवेरे की भांति सरकार और संत लोंगोवाल के बीच हुए समझौते में कड़ी बनने का श्रेय हमको दिया जा रहा है। पर हमारी मंसा किसी श्रेय को पाने की नहीं, केवल देश में अहिंसक शक्तियों को प्रतिष्ठित करने की है।" ___ एक पुरोहित गुरुदेव के चरणों में उपस्थित होकर बोला- मैंने आपके दर्शन तो आज ही किए हैं लेकिन मैं आपका पक्का प्रशंसक हूं। लोगों के बीच में आपकी प्रशंसा करता रहता हूं। मैंने अनेक लोगों को आपके दर्शन की प्रेरणा दी है। गुरुदेव ने गंभीर मुद्रा में फरमाया'पुरोहितजी! हमें आपकी प्रशंसा नहीं चाहिए, हम उसका क्या करें? आप अपने जीवन का उत्थान करें, सत्य को पहचानें, यही कल्याण का रास्ता है। हम यही चाहते हैं कि सबका जीवन उत्कर्ष को प्राप्त हो।' ये घटनाप्रसंग सबको फलाशासंयम की अभिनव प्रेरणा देने वाले हैं। अपने जीवन के आठवें दशक में उन्होंने निस्पृह, निष्काम एवं आकिंचन्यभाव का एक महान् आदर्श आचार्य-पद का विसर्जन करके किया। एक ओर जहां मरणासन्न स्थिति में भी व्यक्ति, सत्ता, संपदा एवं अधिकार की लालसा छोड़ना नहीं चाहता, वहां समर्थ एवं सक्षम होते हुए भी इतने प्रतिष्ठित पद का त्याग निस्पृहता का श्रेष्ठ उदाहरण है। आचार्यपद-विसर्जन के द्वारा वे समाज को सक्रिय प्रशिक्षण देना चाहते थे। पद-विसर्जन के अवसर पर
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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