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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १७० बदल जाती है। पूज्य गुरुदेव ने ११ वर्ष की अवस्था में गृहत्याग कर दिया। - मिट्टी से बना ऐसा कोई घर नहीं था, जिसे वे अपना कहें। पर उनके शब्दों में वे सदा अपने घर में रहते थे— “एक घर ऐसा भी है, जिसमें सदा रहा जा सकता है, जहां पहुंचने के बाद लौटने की बात समाप्त हो जाती है तथा छोटे-बड़े, अपने-पराए की भेदरेखा मिट जाती है। वह घर है व्यक्ति की अपनी आत्मा । जो आत्मा में रहने की कला सीख लेता है, वह घर के बाहर रहे या भीतर, उसे कभी किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता । " जब तक अध्यात्म आत्मा की मांग नहीं बनता, व्यक्ति की दौड़ बाह्य पदार्थों की ओर होती रहती है, वह केवल शरीर के स्तर पर जीता है, उसे अन्तर्जगत् के वैभव का ज्ञान नहीं होता। सारी साधन-सामग्री होने पर भी वह विपन्नता का अनुभव करता रहता है । आत्मबोध होने के पश्चात् व्यक्ति उस अखूट वैभव को प्राप्त कर लेता है, जिसके समक्ष संसार का समस्त वैभव अकिंचित्कर हो जाता है। इस संदर्भ में पूज्य गुरुदेव के ये अनुभव पठनीय हैं— " अन्तर्मुखता के क्षणों में जो रसानुभूति होती है, वह बहिर्मुखता की स्थिति में नहीं हो सकती । सामान्यतः व्यक्ति सोच ही नहीं सकता कि भीतर कितनी रसकूपिकाएं हैं, कितनी सुखद अनुभूतियां हैं।" "जब तक आत्मबोध की दिशा प्राप्त नहीं होती है, व्यक्ति • शरीर को देखता है । वह उसे सुन्दर देखना और दिखाना चाहता है। इसके लिए वह प्रसाधन-सामग्री का उपयोग भी करता है । अपनी ओर से पूरी तैयारी के बाद जब वह दर्पण हाथ में लेकर अपनी आकृति निहारता है अथवा आदमकद आईने के सामने खड़ा होकर अपना प्रतिबिम्ब देखता है, तब अपने सौन्दर्य पर मुग्ध हो जाता है। किन्तु वह नहीं जानता कि इस शरीर में कोई ऐसा तत्त्व भी है, जो सहज सुन्दर है । उसकी रमणीयता कभी कम नहीं होती। बीमारी और बुढ़ापे का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । शारीरिक सौन्दर्य तो क्षणिक है । काल का कोई भी निर्मम आघात इस सौन्दर्य - प्रतिमा को खंडित कर सकता है । इसलिए हम उस सौन्दर्य का दर्शन करें, जो कालजयी है, पदार्थजयी है और स्वाभाविक है । ' पूज्य गुरुदेव ने अध्यात्म के शिखर को छूने का प्रयत्न किया था।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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