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________________ साधना की निष्पत्तियां अभिमत था कि सब कुछ जानकर भी जिसने यह नहीं जाना कि मैं कौन हूं ? वह रीता का रीता रह जाता है अतः आत्म-ज्ञान सृष्टि का सबसे बड़ा रहस्य है ।' स्वामी रामतीर्थ अपने अनुभव को इस भाषा में प्रस्तुत करते हैं- 'एन्थोनी ने प्रेम में, ब्रूटस ने कीर्ति में और सीजर ने साम्राज्यविस्तार में आनन्द ढूंढा । प्रथम को अपमान, द्वितीय को घृणा और तृतीय को कृतज्ञता मिली एवं प्रत्येक नष्ट हो गया। संसार की सभी वस्तुएं जब अनुभव की तराजू पर तौली गयीं तो सबकी सब निकम्मी निकलीं अर्थात् सबके सब निस्सार प्रतीत हुए। केवल आत्मज्ञान ही हृदय को आनन्द देने वाला निकला।' १६७ आत्मबोध पुस्तकीय ज्ञान से नहीं अपितु आभ्यंतर जागृति से उपलब्ध होता है। इस संदर्भ में पूज्य गुरुदेव की अनुभवपूत वाणी द्रष्टव्य है— 'ज्ञानी होने का अर्थ पुस्तकीय ज्ञान या उपाधियां हासिल करने से नहीं है । ज्ञानी वह होता है, जिसकी प्रज्ञा जागती है, अन्तर्दृष्टि खुलती है । ढेर सारी जानकारियों के आधार पर व्यक्ति ज्ञानी बनता तो संसार में ज्ञानी लोगों की भीड़ लग जाती । स्थिति यह है कि बहुत खोज करने पर भी मुश्किल से कुछ व्यक्ति ऐसे मिलते हैं, जो ज्ञानी होने का गौरव पा चुके हैं । ' आत्मबोध के बिना बाह्य को पहचानने की भी सही दृष्टि प्राप्त नहीं हो सकती। “जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ " इस सूक्त के द्वारा भगवान् महावीर ने इसी सत्य का संगान किया है। पूज्य गुरुदेव ने इसी अर्हद्-वाणी का काव्यमय अनुवाद प्रस्तुत किया है जो अध्यात्मतत्त्व का वेत्ता, वही बाह्य को जान सकेगा। बाह्य वस्तुविज्ञाता ही, अध्यात्म-तत्त्व पहचान सकेगा ॥ एक दूसरे को बिन जाने, एकांगी वह अल्पज्ञानी । आयारो की अर्हत्वाणी ॥ पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी का आत्मबोध इतना जागृत था कि कोई
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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