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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ..१६६ धैर्य सत्य में ही धारण कर, सत्य नाव से भव-सागर तर, निरत सत्य में जो मेधावी, कर्मविजेता वह बलिदानी। आयारो की अर्हदवाणी। सत्य के प्रयोगों की दृष्टि से महात्मा गांधी का जीवन प्रसिद्ध रहा है। पूज्य गुरुदेव ने ७० वर्ष के संयमी-जीवन में सत्य के अनेक प्रयोग किए थे। वे अनेक बार इस संकल्प को दोहराते थे- "मेरे कदम निरन्तर सत्य की राह को मापते रहें और मैं जीवन के एक-एक क्षण को सार्थक करूं, यही अभीप्सा है।" 'मेरा जीवन: मेरा दर्शन' पुस्तक में उनकी सत्यनिष्ठा अनेक स्थलों पर प्रकर्ष रूप से उजागर हुई है। यहां पूज्य गुरुदेव की सत्यनिष्ठा के कुछ आयाम उकेरे गए हैं। सत्य को क्षण-क्षण जीकर गुरुदेव ने सत्य का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया, वह सत्य-साधना की बारीकियों का अभिलेख है। उनकी सत्यनिष्ठा का सात्मीकरण साधना के क्षेत्र में हर साधक के लिए प्रेरणापाथेय है। गुरुदेव ने सत्य को केवल पढ़कर नहीं, अपितु जीकर कहा और लिखा, इसलिए उसकी महत्ता शतगुणित है और आने वाली पीढ़ी के लिए नया आलोक है। आत्मबोध प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा- "पदार्थों को जानने एवं उनके रहस्य खोजने में मैंने अपना पूरा जीवन लगा दिया लेकिन अब मैं ज्ञाता को जानना चाहता हूं। जब तक ज्ञाता को ज्ञेय नहीं बनाया जाएगा, विज्ञान की खोज अधूरी रहेगी। यदि मुझे पुनर्जन्म में मानव-देह मिलेगी तो मैं आत्मा को जानने में अपनी संपूर्ण शक्ति लगाना चाहता हूं। अब मेरे ज्ञेय का विषय ज्ञाता होगा।" आइंस्टीन का यह वक्तव्य आत्मबोध की.तीव्र तड़प को व्यक्त करने वाला है। साधक और आत्मबोध- ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो आत्मज्ञानी नहीं, वह हजारों वर्ष साधना करने के बावजूद भी ' अपनी लक्षित मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकता। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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