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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १६४ साथ काफी समय तक अंतरंग बातें कीं। उस दिन डायरी में गुरुदेव ने जो विचार लिखे, वे पठनीय हैं- "मुनि नथमलजी पर मुझे काफी भरोसा है। ये गुरु-दृष्टि की सूक्ष्मता से आराधना करते हैं। साहित्य के क्षेत्र में इन्होंने अच्छी प्रगति की है। मेरा विश्वास है कि कई विषयों में इनकी शासन को बड़ी देन होगी। इनके स्वास्थ्य को लेकर मैं कभी-कभी चिंतित हो जाता हूं। फिर सोचता हूं कि शासन का भविष्य उज्ज्वल है। हमारे द्वारा शासन की सेवा होनी है, उसमें इनका सहयोग मिलना अवश्यंभावी है तो मिलेगा ही। फिर चिंता क्यों करूं? समय पर सब ठीक होगा।" ४४ साल पूर्व कही गयी गुरुदेव की यह वाणी आज अक्षरशः सत्य प्रतीत हो रही है। पूज्य गुरुदेव ने सुजानगढ़ में २०२० का चातुर्मास लाडनूं में फरमा दिया। गुरुदेव सुजानगढ़ से बीदासर पधार गए। चातुर्मास का संवाद मिलते ही लाडनूं के प्रसिद्ध श्रावक हनुमानमलजी बैंगानी, सदासुखजी कोठारी एवं मांगीलालजी नाहटा आदि कुछ गणमान्य व्यक्ति बीदासर पहुंचे। चातुर्मास सम्बन्धी व्यवस्था का विवरण प्रस्तुत करने के बाद लोगों ने निवेदन किया कि साध्वीश्री मनोहरांजी के कैंसर की बीमारी ने असाध्य रूप धारण कर लिया है। उनके शरीर से खून इतना प्रवाहित हो रहा है कि उन्हें मूल ठिकाने से निर्धारित साध्वियों के स्थान पर ले जाना अत्यन्त जटिल समस्या है। पूरी बात सुनने के बाद गुरुदेव कायोत्सर्ग एवं ध्यानमुद्रा में लीन हो गए। लगभग दो मिनिट बाद आंखें खोलकर कहा- 'यह कोई समस्या नहीं है।' लोगों का मन समाहित नहीं हुआ। प्रस्थान के समय मंगलपाठ सुनते समय लोगों ने फिर साध्वीश्री वाली समस्या गुरुदेव के चरणों में रखी। गुरुदेव ने कठोर मुद्रा में फरमाया- 'मैंने कह दिया समस्या नहीं है और तुम कहते हो समस्या है।' लाडनूं पहुंचते-पहुंचते भाइयों को रात हो गई अतः प्रातः जल्दी ही वे चाकरी करने वाली साध्वियों के दर्शन हेतु गए। दर्शन करते ही वहां देखा कि साध्वीश्री मनोहरांजी का स्वर्गवास हो गया है। उनका पार्थिव शरीर नीचे खंभे से बंधा हुआ था। पूज्य गुरुदेव की वाक्सिद्धि का चमत्कार ही मानना चाहिए कि साध्वी मनोहरांजी स्वयं तो समस्या से मुक्त हो ही गईं दूसरों के लिए भी उनकी व्यवस्था में कोई समस्या नहीं रही।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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