SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना की निष्पत्तियां सत्य की साधना मितभाषण के साथ जुड़ी हुई है। अधिक बोलने वाले व्यक्ति से जाने-अनजाने में असत्यभाषण हो ही जाता है। "मेरा जीवन: मेरा दर्शन" पुस्तक में प्रदत्त यह अनुभव इसी तथ्य को उजागर करने वाला है - "मैंने अनुभव किया है कि सत्य की साधना के लिए अल्पभाषी होना आवश्यक है, अन्यथा साधना में अपूर्णता रहती है। सत्य की साधना को पुष्ट करने के लिए आत्मप्रशंसा और परनिन्दा से बचना ... बहुत जरूरी है। शास्त्रों में असत्य भाषण के चार कारण बतलाए गये हैंक्रोध, लोभ, भय और हास्य । इनके रहते सत्य की सर्वांगीण साधना कैसे संभव है ? चिंतन की प्रक्रिया आत्मनिरीक्षण के क्षणों में साधक को उद्वेलित कर देती है । उस दिन मेरा मन भी कुछ अधिक उद्विग्न हो गया था । सूक्ष्मता के साथ सत्य की विशेष साधना में संलग्न रहने का संकल्प जगा । .. उस सिलसिले में प्रश्न - व्याकरण सूत्र का सत्य सम्बंधी पाठ मुझे बहुत प्रेरक लगा - १५९ अणेगपासंडपरिगहियं, जं तं लोकम्मि सारभूयं । गंभीरतरं महासमुद्दाओ, थिरतरगं मेरुपव्वयाओ ॥ सोमतरं चंदमंडलाओ, दित्ततरं सूरमंडलाओ। विमलतरं सरयनहतलाओ, सुरभितरं गंधमादणाओ ॥ सत्य ऐसा तत्त्व है, जो सभी धर्म-सम्प्रदायों द्वारा सम्मत है। वह लोक में सारभूत है, महासमुद्र से अधिक गंभीर है, मेरु पर्वत से अधिक स्थिर है, चन्द्रमण्डल से अधिक सौम्य है, सूर्यमण्डल से अधिक तेजस्वी है, शरद ऋतु के आकाश से अधिक निर्मल है और गंधमादन पर्वत से अधिक सुगंधित है। सत्य और अहिंसा मेरी आस्था के ध्रुवतत्व हैं। 1 मैं अपने प्रवचनों में भी इन पर पर्याप्त बल देता हूं। सिद्धान्ततः प्रायः सभी लोग इनके महत्त्व को स्वीकार करते हैं किन्तु सिद्धान्त और व्यवहार की दूरी पाटने के समय उनके कदम ठिठक जाते हैं।" " हिरण्यमयेण पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं" यजुर्वेद का यह सूक्त इस बात की ओर संकेत करता है कि सत्य का मुख प्रलोभनों से ढका हुआ है । हरेक व्यक्ति उस पथ पर नहीं चल सकता । पूज्य गुरुदेव के शब्दों में सत्य का पथ फूलों से नहीं, कांटों से भरा है। कांटों को गले लगाने
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy