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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १५८ पूज्य गुरुदेव ने अपने सम्पूर्ण जीवन को सत्य की खोज में समर्पित कर दिया था। आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में "आचार्य तुलसी का जीवन एक दर्शन है और दर्शन का वह महाग्रन्थ है, जिसमें परमसत्य को खोजा जा सकता है।" केदारनाथ चटर्जी ने गुरुदेव के प्रथम दर्शन में अपनी अनुभूति लिखते हुए कहा- 'बहुत कम लोगों के मुख पर मैंने सत्य और पवित्रता की वह उज्ज्वल ज्योति अपने पूरे तेज के साथ चमकते हुए देखी, जो आचार्य तुलसी में है। मैं पारदर्शी, सत्यनिष्ठ और तेजोमय महापुरुषों की अगली पंक्ति में आचार्य श्री तुलसी का स्थान देखता हूँ। गुरुदेव तुलसी ने सत्य को साक्षात् जीया। उनके ७० वर्ष के संन्यस्त जीवन के कुछ अनुभव इन पंक्तियों में पढ़े जा सकते हैं "मेरा एक-एक रोम सत्य के लिए समर्पित है। सत्य मेरा जीवन है, प्राण है और श्वासोच्छ्वास है। मेरी समूची साधना सत्य के लिए है। मेरा यह अटूट विश्वास है कि सत्य कभी हारता नहीं है। हर प्रतिकूल परिस्थिति में उसका तेज निखरता है किन्तु व्यवहार के धरातल पर उसे जय-पराजय के साथ जोड़ने का औचित्य समझ में नहीं आता।" * मेरे चिंतन में कहीं ठहराव नहीं है। मैं तो सत्य का खोजी हूं। सत्य की खोज में आगे बढ़ रहा हूं। कहीं भी सत्य की कोई किरण दिखाई दे, उसे स्वीकार करने में परहेज नहीं करता।.......मेरे कदम निरंतर सत्य की राह को मापते रहें और मैं जीवन के एक-एक क्षण को सार्थक करूं, यही आशा और अभीप्सा है। * सत्य का फल सदा मधुर होता है पर मधुरता के परिपाक होने तक तपस्या भी आवश्यक है। तप तपे बिना, कष्ट सहे बिना, सत्य को नहीं पाया जा सकता। * सत्य के प्रति मेरे मन में अखण्ड आस्था है। मैं यह मानता हूं कि सत्यनिष्ठ व्यक्ति या समूह का कोई अनिष्ट हो ही नहीं सकता। शर्त एक ही है कि आस्था निश्छिद्र हो........ सत्य, शिव और सौंदर्य के विकास के लिए मैंने सदा यत्न किया है। किन्तु मैं मानता हूं कि सौंदर्य से भी पहले सत्य की सुरक्षा होनी चाहिए क्योंकि सत्य के बिना सौन्दर्य का मूल्य नहीं हो सकता।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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