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________________ अध्यात्म के प्रयोक्ता महाप्रज्ञोऽस्तु मंगलं, तेरापंथोऽस्तु मंगलं ॥ विधनहरण मंगलकरण, स्वाम भिक्षु रो नाम । गुण ओलख सुमिरण करे, सरै अचिन्त्या कामं ॥ (तीन बार ) व्यक्तित्व-निर्माण का प्रयोग १५३ I व्यक्तित्व-निर्माण संसार का सबसे कठिन कार्य है । व्यक्तित्वनिर्माण के क्षेत्र में गांधीजी के बाद पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। पूज्य गुरुदेव समय - समय पर व्यक्तित्व - निर्माण के अनेक सूत्र संघ के समक्ष प्रस्तुत करते रहते थे। उनकी तीव्र तड़प थी कि तेरापंथ संघ के हर सदस्य का जीवन आदर्श और प्रेरक हो । सन् १९९७ लाडनूं प्रवास में उन्होंने साधु-साध्वियों के समक्ष जीवन रूपांतरण की एक वैज्ञानिक रूपरेखा प्रस्तुत की, जिसके आधार पर हर व्यक्ति अपने जीवन को स्वस्थ, संतुलित और आनन्दमय बना सकता है। साधु-साध्वियों की गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा'रूपांतरण के लिए नयी प्रतिमा बनाना आवश्यक है । " अनुरागाद् विरागः " यह अनुप्रेक्षा का सिद्धान्त है। जब तक नयी प्रतिमा या नए लक्ष्य का निर्माण नहीं होगा, पुराने संस्कारों को मिटाना कठिन होता है। रूपांतरण के लिए तीन तत्त्व आवश्यक हैं 44 १. लक्ष्य का निर्धारण । २. प्रतिमा का निर्माण । ३. दृढ़ संकल्पनिष्ठा। सर्वप्रथम लक्ष्य-निर्धारण हो कि मुझे अच्छी साध्वी या अच्छा साधु बनना है । तदनन्तर प्रतिमा का निर्माण किया जाए। किसी भी रेखाचित्र में पांच अंग मुख्य रूप से अनिवार्य होते हैं। वंदना भी पंचांग प्रणति के रूप में प्रसिद्ध है । वे पांच अंग हैं - सिर, दो भुजाएं, दो पैर । आंतरिक रूपांतरण हेतु नवनिर्मित ढांचे को भावना के साथ जोड़ना आवश्यक है। इसका क्रम इस प्रकार रहेगा सिर-उपशांत कषाय । दो भुजाएं - विनम्रता और सामंजस्य । दो पैर - सहिष्णुता और सेवा - सहयोग । प्रतिमा निर्माण के बाद एकाग्रता से संकल्प एवं अनुप्रेक्षा का
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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