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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी . १५२
१. प्रतिक्रमण ५. स्वाध्याय २. प्रतिलेखन ६. ध्यान/कायोत्सर्ग ३. अर्हत्-वन्दना ७. जपयोग
४. योगासन ____ ये सातों ध्रुवयोग अध्यात्म के ऐसे प्रयोग हैं, जो साधक को अन्तर्मुखी बनाने वाले हैं तथा नियमित रूप से प्रतिदिन सब साधु-साध्वियों के लिए करणीय हैं। बृहद् मंगलपाठ
- जैनधर्म में मंगलपाठ श्रवण का अत्यधिक महत्त्व है। हर कार्य का शुभारम्भ मंगलपाठ सुनकर ही किया जाता है। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ ने मंगलपाठ के संदर्भ में एक नया प्रयोग प्रारम्भ किया। मंगलपाठ के साथ आगम के पद्य एवं कुछ अन्य मांगलिक श्लोकों को भी जोड़ दिया। हजारों की संख्या में लोग प्रातः और सायं मंगलपाठ का श्रवण कर आत्मशक्ति को प्राप्त करते हैं। उस समय श्रोताओं की करबद्ध भावपूर्ण मुद्रा एवं एकाग्रता देखते ही बनती है। पूज्य गुरुदेव के शब्दों में मंगलपाठ का श्रवण करने वाले का चित्त पूरे दिन सहज ही आध्यात्मिक भावना से ओत:प्रोत रहता है तथा चित्त भी शांत और प्रशांत बन जाता है। बृहद् मंगलपाठ की प्रविधि इस प्रकार है
- नमस्कार महामंत्र....एसो पंच णमुक्कारो। - चत्तारि मंगलं (पूरा पाठ) * धम्मो मंगलमुक्किटुं, अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो॥ * चइत्ता भारहं वासं, चक्कवट्टी महिड्डिओ।
संती संतिकरे लोए, पत्तो गइमणुत्तरं॥ देव-दाणव-गंधव्वा, जक्ख-रक्खस-किन्नरा।
बंभयारि नमसंति, दुक्करं जे करेंति तं॥ * मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं स्थूलिभद्राद्याः, जैनधर्मोऽस्तु मंगलं॥ * मंगलं मतिमान् भिक्षः, मंगलं भारमल्लकः।
मंगलं रायचन्द्राद्याः, मंगलं तुलसीगुरुः॥