________________
साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
-
१५०
परस्पर चरण-स्पर्श नहीं करना, गृहस्थों से भी चरण-स्पर्श नहीं कराना ।
पत्र-पत्रिका आदि नहीं पढ़ना ।
ध्यान, कायोत्सर्ग, योगासन आदि नियमित रूप से करना । वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रेक्षाध्यान का प्रयोग किया जा रहा है। पूरे वर्ष में देश एवं विदेश में सैकड़ों शिविर आयोजित होते हैं । प्रेक्षाध्यान का स्वतंत्र विवरण एक अलग खंड में किया जाएगा। जीवन-विज्ञान
विद्यार्थी देश की भावी पीढ़ी होता है । पूज्य गुरुदेव के मन में चिंतन उभरा कि शिक्षा के साथ अध्यात्म के कुछ ऐसे प्रयोग जोड़े जाएं, जिससे विद्यार्थी प्रारम्भ से ही अपने जीवन को बदल सके और एक आदर्श नागरिक की भूमिका निभा सके। शारीरिक एवं बौद्धिक प्रशिक्षण की बात स्कूलों में भी सिखायी जाती है पर इस प्रयोग के माध्यम से विद्यार्थी में मानसिक एवं भावनात्मक विकास कैसे हो, इस पर अधिक जोर दिया गया। आज देश के अनेक प्रांतों के सैकड़ों स्कूलों एवं कॉलेजों में जीवनविज्ञान के प्रयोग कराए जा रहे हैं तथा परिणाम भी बहुत आशाजनक आए . हैं। आज तक हजारों अध्यापकों को जीवन-विज्ञान का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। सरकार की ओर से भी इस दिशा में अच्छा सहयोग मिल रहा है । जीवन-विज्ञान का विस्तृत विवेचन स्वतंत्र खंड में किया जाएगा। अहिंसा सार्वभौम
पूज्य गुरुदेव ने अपनी हर सोच को अहिंसा के साथ जीया था। किसी के कष्ट की कल्पना से ही उनका करुणार्द्र चित्त पिघल जाता था । अहिंसा का सामाजिक जीवन में वर्चस्व बढ़े, यह उनका निजी स्वप्न था । • इस दृष्टि से अहिंसा के क्षेत्र में नए प्रयोग एवं प्रशिक्षण का चिंतन उनकी मौलिक सोच थी । अहिंसा सार्वभौम के बारे में अपना चिंतन व्यक्त करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा- " अहिंसा सार्वभौम में अहिंसा के गुणगान नहीं हैं, अहिंसा की परिभाषा नहीं है, अहिंसा की व्याख्या नहीं है, इसमें है अहिंसा का अनुशीलन, शोध और उसके प्रयोग । प्रायोगिक होने के कारण यह एक वैज्ञानिक प्रस्थापना है । "