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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ___ १४८ विद्युत् परियोजनाओं, औद्योगिक प्रतिष्ठानों, अट्टालिकाओं, वाहनों या कम्प्यूटरों के आधार पर नहीं हो सकता। पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी की दृष्टि में विकास की मूल भित्ति है- संयम, सादगी, भाईचारा, अनुशासन आदि आध्यात्मिक मूल्य। चारित्रिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए देश की स्वतंत्रता के साथ गुरुदेव ने एक नैतिक आन्दोलन चलाया, जो अणुव्रत के नाम से प्रसिद्ध है। यह आंदोलन जाति, वर्ण, वर्ग, भाषा से ऊपर एक असांप्रदायिक आंदोलन है। ___ अणुव्रत आचरण प्रधान धर्म है। इसने धार्मिक जीवन के द्वैध को मिटाने का प्रयत्न किया है। अणुव्रत के अनुसार ऐसा नहीं हो सकता कि व्यक्ति मंदिर में जाकर भक्त बन जाए और दुकान पर बैठकर क्रूर अन्यायी। अणुव्रत कहता है धर्म किसी मंदिर या पुस्तक में नहीं, बल्कि जीवनव्यवहार एवं वाणी में होना चाहिए। धार्मिकता के साथ नैतिकता का गठबंधन करके अणुव्रत ने एक धर्मक्रांति प्रस्तुत की है। अणुव्रत का आह्वान है- . धार्मिक है पर नहीं कि नैतिक, बहुत बड़ा विस्मय है, नैतिकता से शून्य धर्म का, यह कैसा अभिनय है? . इस उलझन का धर्मक्रांति ही, है कमनीय किनारा। बदले युग की धारा॥ अणुव्रत आंदोलन की गूंज गरीब की झोंपड़ी से लेकर राष्ट्रपति के भवन तक पहुंची है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद कहते हैं- 'आज के युग में जबकि मानव अपनी भौतिक उन्नति से चकाचौंध होता दिखाई दे रहा है और जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक तत्त्वों की अवहेलना कर रहा है, वहां ऐसे आन्दोलनों द्वारा ही मानव अपने संतुलन को बनाए रख सकता है और भौतिकवाद के विनाशकारी परिणामों से बचने की आशा कर सकता है।' अणुव्रत अध्यात्म का मध्यम मार्ग है, जिसे अपनाकर मनुष्य अपनी मनुष्यता को कायम रखता हुआ शोषणविहीन समाज की स्थापना कर सकता है। अणुव्रत के बारे में पूज्य गुरुदेव की कल्पना उन्हीं के शब्दों में पठनीय है- 'मेरे मन में बहुत बार ऐसी भावना उठती है कि अणुव्रत अध्यात्म की ऐसी प्रयोगशाला बने, जहां मनुष्य मानवीय समता का प्रत्यक्ष दर्शन कर सके। अणुव्रत गुरुदेव के जीवन का विशिष्ट कार्यक्रम है अतः इसकी विस्तृत चर्चा अलग खंड में की जाएगी।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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