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________________ १४७ अध्यात्म के प्रयोक्ता पीछे पूज्य गुरुदेव का लक्ष्य या संकल्प उन्हीं की भाषा में पठनीय है— 'चतुर्विध धर्मसंघ के व्यक्तित्व का निर्माण करना, उनकी बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना, भावनात्मक विकास करना, स्वभाव - परिवर्तन की कला सिखाना और प्रायोगिक जीवन जीना सिखाना, एक वाक्य में कहा जाए तो आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण करना।' योगक्षेम वर्ष को अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय का प्रायोगिक वर्ष कहा जा सकता है क्योंकि पूरे वर्ष प्रशिक्षणार्थी को अनेक विषयों के ज्ञान के साथ योगासन, ध्यान, कायोत्सर्ग, जप, अनुप्रेक्षा आदि के प्रयोग भी कराए गए। यद्यपि सैकड़ों साधु-साध्वियों को एक साथ प्रशिक्षित करने का यह प्रयोग इतना सरल नहीं था लेकिन पूज्य गुरुदेव का मनोबल और संकल्पबल हर असंभव को संभव करके दिखा देता था । उनके प्रयोगधर्मा व्यक्तित्व की ही फलश्रुति थी कि इतना बड़ा और महान् अनुष्ठान सानन्द सफल हुआ और अनेक व्यक्तियों ने विधिवत् प्रशिक्षण ग्रहण किया। इस प्रयोग के संदर्भ में पूज्य गुरुदेव की दृढ़ आस्था इन पंक्तियों में पठनीय है- 'सही चिंतन, व्यवस्थित योजना, समुचित उपकरण और पर्याप्त पुरुषार्थ हो तो कोई भी काम कठिन नहीं होता । पुरुषार्थ की परिणति में देर हो सकती है, पर अन्धेरे का वहां अवकाश नहीं है। हम जीवन भर प्रयत्न करें, प्रयोग करें, तभी उसका वांछित परिणाम हमें मिल सकेगा। हाथ-पैर हिलाते - हिलाते दही से मक्खन निकल सकेगा।.......मेरा विश्वास है कि इस प्रयोग से कुछ बहुश्रुत तैयार होंगे। वे अपने भावनात्मक विकास के द्वारा ऊंचाई और गहराई को एक साथ आत्मसात् कर एक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे।' प्रशिक्षण में भाग लेने वाले हर प्रशिक्षणार्थी को पांच सूत्र दिए गए, जो व्यावहारिक होते हुए भी विशुद्ध आध्यात्मिक थे - ( १ ) प्रामाणिक व्यवहार (२) जागरूक व्यवहार ( ३ ) विनम्र व्यवहार (४) मृदु व्यवहार (५) संघनिष्ठा । पूरे वर्ष प्रवचनों, व्याख्यानों एवं गोष्ठियों के माध्यम से अनेक नए तथ्यों का प्रकटीकरण हुआ। साथ ही ध्यान - जाप आदि के भी विभिन्न प्रयोग कराए गए। इस वर्ष की विस्तृत जानकारी एक स्वतंत्र खंड दी जाएगी। अणुव्रत आंदोलन किसी भी देश के विकास का आकलन चौड़ी सड़कों, बांधों,
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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