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________________ १४३ अध्यात्म के प्रयोक्ता उपासक संघ शिविर श्रावक समाज में विशेष साधक तैयार करने के लिए उपासक वर्ग की योजना सोची गयी। मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञ) एवं मुनि मधुकरजी ने उपासक संघ का प्रारूप तैयार किया। उसमें दो कक्षाएं रखी गयीं- संघवासी उपासक और गृहवासी उपासक। संघवासी उपासक जो ब्रह्मचारी रहते हुए संघ में साधना करेंगे। गृहवासी उपासक समय-समय पर शिविरों में भाग लेंगे पर सामान्यतः घर में रहते हुए नियमों के प्रति जागरूक रहेंगे। उपासक संघ का सर्वप्रथम मासिक शिविर लाडनूं में ६ जुलाई, १९६३ को प्रारम्भ हुआ, जिसमें बयासी भाई-बहिनों ने भाग लिया। इस शिविर के संचालन का दायित्व चंदनमलजी मेहता (जोधपुर) ने संभाला तथा साधना संबंधी प्रशिक्षण में मुनि नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ) का विशेष योगदान रहा। उपासक संघ प्रारम्भ करने के पीछे गुरुदेव का प्रारम्भिक चिंतन था श्रावक समाज में विवेक का जागरण। इस दृष्टि से विवेगे धम्ममाहिए' यह आगमिक सूक्त शिविर का घोष रखा गया। साधना के साथ-साथ समाज में अणुव्रत आंदोलन का रचनात्मक रूप प्रस्तुत किया जाए। जीवन-परिमार्जन और विवेक-जागरण की दृष्टि से यह प्रयोग बहुत सफल रहा। उपासक शिविर के संदर्भ में पूज्य गुरुदेव का विश्वास निम्न शब्दों में व्यक्त हुआ-'उपासकों का वह शिविर मेरी दृष्टि में भावी समाज के लिए एक नया दिशादर्शन था। जिस प्रकार अणुव्रत और नया मोड़ एक दिशादर्शन था, वैसे ही उपासक संघ था। प्रथम बार में उसका सुनियोजित रूप सामने नहीं आ पाया, पर भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया। मानव-समाज आज जिस घोर प्रताड़ना में जी रहा है, उसे ऐसे दिशादर्शन की बहुत बड़ी अपेक्षा है। धर्माचार्यों का यह काम होना चाहिए कि वे मानव समाज को राह दिखाएं। इस शिविर में विशेष रूप से इन विषयों पर प्रशिक्षण दिया गया - आहार एवं खाद्यसंयम। - क्रोध एवं आवेश से बचने के उपाय। - साधना में ज्ञान, दर्शन और आचार का स्थान। - आग्रह का नियंत्रण।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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