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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
का पांच बार पाठ ।
ॐ ह्रीं क्लीं क्ष्वीं धम्मो मंगलमुक्किट्ठे ..
आदि पांच श्लोकों का सात बार पाठ । ॐ ह्रीं क्लीं क्ष्वीं
धम्मो मंगलमुक्किहूं, अहिंसा संजमो तवो ।
देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे
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सया मणो ॥ १ ॥ आवियई रसं ।
पीणेइ अप्पयं ॥ २ ॥
जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो न य पुप्फं किलामेइ, सो य एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो । विहंगमा व पुप्फेसु, दाणभत्तेसणे रया ॥ ३ ॥ वयं च वित्तिं लब्भामो, न य कोइ उवहम्मई । अहागडेसु रीयंति, पुप्फेसु भमरा जहा ॥ ४ ॥ महुकारसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिया । नाणापिंडरया दंता, तेण वुच्छंति साहुणो ॥ ५ ॥ प्रातः १०.०० से १०.३० - आध्यात्मिक प्रवचनमध्याह्न २.३० से ३.१५ आगम-पाठ का स्वाध्याय । (दसवेआलियं, उत्तरज्झयणाणि आदि आगमों के मूल पाठ का स्पष्ट व शुद्ध उच्चारण एवं व्याख्या)
पश्चिम रात्रि - ४.४५ से ५.३०
ॐ उवसग्गहरं पासं (उपसर्गहर स्तोत्र) आदि पांच श्लोक एवं ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नमिऊण'.....मंत्र का नौ बार पाठ । फिर 'विघनहरण' का जप । उवसग्गहस्तोत्र
ॐ उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहर - विसनिन्नासं, मंगल-कल्लाणआवासं ॥ १ ॥ विसहर - फुल्लिंग- मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्स गह-रोग-मारी, दुट्ठजरा जंति उवसामं ॥ २ ॥ चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ । नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख - दोहग्गं ॥ ३ ॥ तुह सम्मत्ते लद्धे, चिन्तामणिकप्पपायवब्भहिए । पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ॥ ४ ॥