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अध्यात्म के प्रयोक्ता १. स्वभाव-परिवर्तन २. सेवावृत्ति का विकास ३. ध्यान ४. स्वाध्याय ५. आसन आदि। अभ्यर्थना पत्र के माध्यम से अनेक संतों ने पूज्य गुरुदेव से साधना के क्षेत्र में मार्गदर्शन प्राप्त किया और अपना मार्ग प्रशस्त किया। नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान
वैदिक परम्परा में पूजा-पाठ एवं धार्मिक दृष्टि से आसोज एवं चैत्र मास का विशेष महत्त्व है। इन महीनों में नौ दिनों तक विशेष उपासना की जाती है, जो नवरात्रि के रूप में प्रसिद्ध है। ये महीने कायाकल्प के लिए भी विशेष महत्त्व के हैं क्योंकि इन महीनों में शरीर एक विशेष प्रकार की रासायनिक प्रक्रिया से गुजरता है। पूज्य गुरुदेव का चिंतन रहा कि इन महीनों में भावनात्मक कायाकल्प के भी कुछ आध्यात्मिक अनुष्ठान चलने चाहिए। गुरुदेव की प्रेरणा से आचार्य महाप्रज्ञजी ने जप और ध्यान का विशेष अनुष्ठान प्रस्तुत किया। इस अनुष्ठान का एक मात्र उद्देश्य हैआत्मशुद्धि और ऊर्जा का विकास। अनुष्ठान की विधि एवं समय-सारणी इस प्रकार निश्चित की गयीप्रातः ९.३० से १०.०० . चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा।
सागरवरगंभीग, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥ का पांच बार पाठ।
___ चंदेसु निम्मलयरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु। का तेरह बार पाठ। - आइच्चेसु अहियं पयासयरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु। का तेरह बार पाठ।
सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु। का तेरह बार पाठ।
आरोग्गबोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दितु। . का तेरह बार पाठ।
सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु। का इक्कीस बार पाठ।
चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु॥