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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १३८ एवं कार्य - विस्तार को देखते हुए पूज्य गुरुदेव ने सन् १९६३ के लाडनूं चातुर्मास में निकाय - व्यवस्था का प्रयोग प्रारम्भ करते हुए कहा- "हम प्रायोगिक युग में जी रहे हैं। प्रयोग प्रगति के लिए बहुत महत्त्व रखता है। मैंने अनेक प्रयोग किए हैं। मैं उनसे निराश नहीं, आश्वस्त हूं। संघ में साधना एवं शिक्षा के विकास हेतु मैं निकाय व्यवस्था का प्रारम्भ करना चाहता हूं।" निकाय - व्यवस्था के मुख्य तीन विभाग थे - प्रबन्ध, साधना और शिक्षा | ये दायित्व साध्वियों को सौपें गए, जो महासती लाडांजी की सहयोगिनी के रूप में प्रतिष्ठित की गयीं। हिसार मर्यादा महोत्सव सन् १९६६ में पूरे संघ के विकास हेतु चार निकायों की व्यवस्था की गयीप्रबन्ध, साधना, शिक्षा और साहित्य । इन चारों को निर्देशन देने हेतु मुनि नथमलजी (आचार्य महाप्रज्ञजी) को निकाय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया । साधना निकाय की कल्पना से स्पष्ट है कि गुरुदेव अपने संघ में केवल शिक्षा ही नहीं, साधना के नए-नए आयामों को खोलना चाहते थे । निकायव्यवस्था का प्रारम्भ भी गुरुदेव के नेतृत्व का एक विशेष साधनात्मक प्रयोग कहा जा सकता है। अभ्यर्थना पत्र चाहे साधना का क्षेत्र हो या शिक्षा का, एकरूपता व्यक्ति को उबा देती है। इसी चिंतन को ध्यान में रखते हुए गुरुदेव साधना के प्रयोगों में भी नवीनता प्रस्तुत करते रहते थे। उनके द्वारा प्रस्तुत उपक्रम हर साधक में पुनः उत्साह का संचार कर देता था । वि. सं. २०२१ में आंतरिक विशुद्धि हे गुरुदेव ने एक नया प्रकल्प संघ के समक्ष प्रस्तुत किया। महोत्सव के अवसर पर सबको अभ्यर्थना पत्र भरने का निर्देश दिया। व्यस्तता के कारण सबको व्यक्तिगत रूप से समय देना कठिन था अतः अभ्यर्थना पत्र में इन विषयों को प्रस्तुत किया गया १. मैं अमुक विषय की साधना करना चाहता हूं । मैं अमुक विषय की शिक्षा प्राप्त करना चाहता हूं । अमुक रोग की चिकित्सा करवाना चाहता हूं। ४. मैं अमुक प्रकार का सहयोग करना चाहता हूं । साधना के संदर्भ में इन विकल्पों को प्रस्तुत किया गया ३. मैं
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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